कविता

बारिश और बसंत तुम्हीं हो

दीपक की बाती-सा शिक्षक,
ईश्वर की पाती-सा शिक्षक,
द्रोण,दधीच,फुले, कृष्णन की
है भारत में थाती शिक्षक।

खुद जलकर देवे उजियारा,
तुमने हिय के तम को मारा,
बदल रही हैं परिभाषाएं,
मगर समर्पित जीवन सारा।

बना मील का पत्थर शिक्षक,
शिष्यों को आगे ले जाए,
खुद तो वहीं खड़ा रहता है,
औरों को मंजिल पहुंचाए।

शिक्षक बना वृक्ष फलधारी,
शिक्षक नदिया तट का वारी,
शिक्षक मंद पवन पुरवाई,
शिक्षक गोविंद पर भी भारी।

शिक्षक है मइया की लोरी,
शिक्षक है पतंग की डोरी,
मेघ सरीखा सब पर बरसे,
ज्ञान -नीर से भर दे झोरी।

किंचित भी अभिमान न पाले,
राग-द्वेष अवदान न पाले,
जितना जतन करे शिष्यों का
यूं, कोई संतान न पाले।

पाहन को भगवान बना दे,
अनपढ़ को विद्वान बना दे,
अंगुलिमाल सरीखों की भी,
पल भर में पहिचान बना दे।

हैं समाज कुछ बदला-बदला,
लेकिन तू अब भी ना बदला,
कवि सुरेश पथ भटक न जाना
कोई कितना भी ले बदला।

सहज,सरल,स्नेही, सुखदायक,
सुधी, समर्पित,भाग्य विधायक,
सेवी,सकल सुजान,सहायक,
शिक्षक है सृष्टी का नायक।

हे ज्ञानी गुणवंत तुम्हीं हो,
जग के असली संत तुम्हीं हो,
जीवन हरियाली से भर दे,
बारिश और बसंत तुम्हीं हो।

सबको सबकी शुभकामनाएं,
आओ मिलकर दीप जलाएं,
केवल एक दिवस के बदले,
हर दिन शिक्षक दिवस मनाएं।

— सुरेश मिश्र

सुरेश मिश्र

हास्य कवि मो. 09869141831, 09619872154

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