कविता

कुवलय

कला का पुरस्कार
अब मिलता नहीं है
चित्र विचित्र होकर भी
कोई बिकता नहीं।

घर की वापसी
अब कोई करता नहीं
प्रजातंत्र के लिए
कोई लड़ता नहीं।

सभ्यता व संस्कृति से
अब कोई डरता नहीं
श्रमिक के लिए किसी से
कोई भिड़ता नहीं ।

अमल-धवल महामानव
अब कोई मिलता नहीं
निदाग कुवलय सा शख्स
कोई दिखता नहीं ।

— डॉ. राजीव डोगरा

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- [email protected] M- 9876777233