युवाओं छात्रों को अपनी सांस्कृतिक विरासत व मातृभाषा से संपर्क बनाए रखना ज़रूरी
भारत माता की गोद में एक से बढ़कर एक अनेक ऐसी ख़ूबसूरत उपलब्धियां, हजारों वर्ष पूर्व से उपलब्ध है जिनकी अणखुट संरचना, प्राकृतिक ख़ूबसूरती, विशाल भारतीय संस्कृति, भारतीय भाषाओं के साहित्यग्रंथों सहित अनेक अपार क्षमता वाली बौद्धिक संपदा का विशाल भंडार देख संपूर्ण विश्व हैरान था, जिस पर नज़र लग गई थी, जिससे हजारों वर्षो की गुलामी से आजादी के बाद 1947 में भारत का विभाजन हुआ, फ़िर भी हम अपनी मेहनत, लगन से फिर अपनी ताकत, ज़ज़बे और जांबाज़ी के साथ वैश्विक पटल पर प्रमुख हस्ती के रूप में अपने हर क्षेत्र की समृद्धि व ताकत के आगाज़ के साथ वैश्विक पटल पर अहम स्थान रखते हैं, जिसे देखकर विश्व की नजरें फिर भारत की ओर आकस्मिकता से देश भारत का लोहा मान रही है। आज भारत उस स्थिति में है जहां भारत की ओर नज़र लगाने वाले को हज़ार बार सोचना पड़ेगा, यह है हमारा आज का भारत।
साथियों बात अगर हम दिनांक 7 सितंबर 2024 को राष्ट्रीयशिक्षक पुरस्कार से सम्मानित शिक्षकों से पीएम की बातचीत की करें तो उन्होने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रभाव पर चर्चा की और अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षक छात्रों को विभिन्न भाषाओं में स्थानीय लोककथाएं सुना सकते हैं,ताकि छात्र दूसरी भाषाएं सीख सकें और भारत की जीवंत संस्कृति से भी परिचित हो सकें उन्होने कहा कि शिक्षक अपने विद्यार्थियों को भारत की विविधता को जानने के लिए शैक्षणिक भ्रमण पर ले जा सकते हैं, जिससे उन्हें कुछ विशेष सीखने में मदद मिलेगी और उन्हें अपने देश के बारे में समग्र रूप से जानने में भी मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा।उन्होने सुझाव दिया कि पुरस्कार विजेता शिक्षकों को सोशल मीडिया के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े रहना चाहिए और पढ़ाई के अपने सर्वोत्तम तरीकों को आपस में साझा करना चाहिए ताकि हर कोई ऐसे बेहतरीन तरीकों से सीख सके उन्हें अपना सके और उनसे लाभ उठा सके।उन्होने कहा किशिक्षक राष्ट्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण सेवा प्रदान कर रहे हैं और आज के युवाओं को विकसित भारत के लिए तैयार करने की जिम्मेदारी उनके हाथों में है।
साथियों बात अगर हम अपनी संस्कृति,विशाल मातृभाषा और भारतीय भाषाओं के साहित्य ग्रंथों की करें तो यह हमारी पहचान है। यूं तो भारत में बावीस भाषाओं को संविधान में मान्यता दी गई है परंतु पूरे भारत की बात करें तो यहां भाषाएं व उपभाषाएं हजारों की संख्या में होंगी, जिसकी रक्षा करना और विलुप्तता से बचाने की ज़वाबदारी हमारे आज के युवाओं के ऊपर है क्योंकि आज हमारे देश की 68 प्रतिशत आबादी युवा है और इस युवा भारत के युवाओं को ही हमारी संस्कृति, भाषाओं को जीवित रखना है। इसलिए हमें अपनी मातृभाषा को महत्व देना होगा और अपने समाज, घर, क्षेत्र में अपनी मातृभाषा में बात करना होगा ताकि उसे हम विलुप्तता से बचा सके। आज इसकी ज़रूरत इसलिए पड़ गई है, क्योंकि आज के बदलते परिवेश में हमारे देश में पाश्चात्य संस्कृति का प्रचलन कुछ तेज़ी से बढ़ रहा है।खासकर के युवाओं में इसका क्रेज अधिक महसूस किया जा रहा है जो बड़े शहरों से होकर अब हमारे छोटे शहरों गांवों में भी फैलने की संभावना बढ़ गई है। जिसका संज्ञान बुजुर्गों को लेना होगा और युवाओं को अपनी मातृभाषा में बोलने, संस्कृति, साहित्य ग्रंथों, भाषाओं की तरफ ध्यान आकर्षित कराकर उन्हें इसके लिए प्रोत्साहन देना होगा ताकि भारतीय धरोहर को विलुप्तता से बचाया जा सके। हमने इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से कई बार देखा, पड़ा, वह सुना है कि हमारे माननीय उपराष्ट्रपति का संज्ञान इस भाषाई क्षेत्र की ओर बहुत अधिक है, और हर मौके पर इस दिशा में सुझाव, मार्गदर्शन अपील प्रोत्साहन देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते जो काबिले तारीफ है।
साथियों शिक्षा के शुरुआती वर्षों में एक महत्वपूर्ण शिक्षण लक्ष्य बुनियादी साक्षरता कौशल का विकास है: पढ़ना, लिखना और अंकगणित। अनिवार्य रूप से, पढ़ने और लिखने के कौशल लिखित रूप में इस्तेमाल किए गए अक्षरों या प्रतीकों के साथ एक भाषा की ध्वनियों को जोड़ने की क्षमता पर निर्भर करते हैं। ये कौशल बोलने और सुनने के मूलभूत और अंतःक्रियात्मक कौशल पर आधारित होते हैं। जब शिक्षार्थी उन्हें निर्देशित करने के लिए इस्तेमाल की गई भाषा बोलते या समझते हैं, तो वे पढ़ने और लिखने के कौशल को तेज़ी से और अधिक सार्थक तरीके से विकसित करते हैं। शिक्षार्थियों को उनकी बोली और समझी जाने वाली भाषा में पढ़ना और लिखना शुरू करने से उन्हें बहुत खुशी होती है जब उन्हें पता चलता है कि वे लिखित पाठों को समझ सकते हैं और अपने परिवेश में लोगों और चीज़ों के नाम लिख सकते हैं। प्रारंभिक ग्रेड रीडिंग में शोध से पता चला है कि जो छात्र पढ़ने के कौशल को जल्दी विकसित करते हैं, वे शिक्षा में आगे रहते हैं। यह भी दिखाया गया है कि शिक्षार्थियों की मातृभाषा में सिखाए गए कौशल और अवधारणाओं को दूसरी भाषा में स्थानांतरित करने पर दोबारा सिखाने की आवश्यकता नहीं होती है। एक शिक्षार्थी जो एक भाषा में पढ़ना और लिखना जानता है, वह नई भाषा में पढ़ने और लिखने के कौशल को तेज़ी से विकसित करेगा। शिक्षार्थी पहले से ही जानता है कि अक्षर ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसे केवल एक नई सीख की आवश्यकता है कि नई भाषा अपने अक्षरों को कैसे ध्वनि देती है। उसी तरह, शिक्षार्थी एक भाषा में अर्जित ज्ञान को स्वचालित रूप से दूसरी भाषा में स्थानांतरित कर देते हैं जैसे ही वे नई भाषा में पर्याप्त शब्दावली सीख लेते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप शिक्षार्थियों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाते हैं,तो बीजों को अंकुरित होने के लिए मिट्टी, नमी और गर्मी की आवश्यकता होती है। आपको इसे अंग्रेजी में फिर से पढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। जब वे अंग्रेजी में पर्याप्त शब्दावली विकसित कर लेते हैं, तो वे जानकारी का अनुवाद करेंगे। इस प्रकार, ज्ञान और कौशल एक भाषा से दूसरी भाषा में स्थानांतरित किए जा सकते हैं। शिक्षार्थियों की मातृभाषा में स्कूल शुरू करने से शिक्षा में देरी नहीं होती है, बल्कि औपचारिक शिक्षा में सफलता के लिए आवश्यक कौशल और दृष्टिकोण का तेजी से अधिग्रहण होता है। स्कूल की शुरुआत में शिक्षार्थियों की घरेलू भाषा का उपयोग शिक्षकों पर बोझ को भी कम करता है, खासकर जहाँ शिक्षक स्थानीय भाषा अच्छी तरह से बोलता है (जो बहुभाषी सेटिंग में अधिकांश ग्रामीण स्कूलों में होता है)। शोध से पता चला है कि सीखने की स्थितियों में जहाँ शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों ही शिक्षा की भाषा के गैर-देशी उपयोगकर्ता हैं, शिक्षक को शिक्षार्थियों के समान ही संघर्ष करना पड़ता है, खासकर शिक्षा की शुरुआत में। लेकिन जब शिक्षण शिक्षकों और शिक्षार्थियों की घरेलू भाषा में शुरू होता है, तो अनुभव सभी के लिए अधिक स्वाभाविक और कम तनावपूर्ण होता है। परिणामस्वरूप, शिक्षक शिक्षण/सीखने की सामग्री और दृष्टिकोणों को डिजाइन करने में अधिक रचनात्मक और अभिनव हो सकता है, जिससे सीखने के परिणामों में सुधार होता है।
साथियों बात अगर हम माननीय पूर्व उपराष्ट्रपति की एक विश्वविद्यालय में स्थापना दिवस समारोह को संबोधन करने की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने इस संबंध में विश्वविद्यालयों से भारतीय भाषाओं में उन्नतअनुसंधान करने तथा भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली में सुधार लाने का सुझाव लाने की अपील की, जिससे कि उनकी व्यापक पहुंच तथा शिक्षा क्षेत्र में उपयोग को सुगम बनाया जा सके। उन्होंने ने आज विभिन्न भारतीय भाषाओं में साहित्यिक ग्रंथों के अनुवादों की संख्या बढ़ाने के लिए सक्रिय तथा ठोस प्रयासों कीअपील की। इस संबंध में उन्होंने क्षेत्रीय भारतीय साहित्य की समृद्ध धरोहर को लोगों की मातृ भाषाओं में सुलभ कराने के लिए अनुवाद में प्रौद्योगिकीय उन्नति का लाभ उठाने का सुझाव दिया। यह देखते हुए कि भूमंडलीकरण का व्यापक प्रभाव है,पूर्व उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि यह अनिवार्य रूप से सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि युवा अपनी सांस्कृतिक विरासत से संपर्क बनाए रखे। पहचान बनाने तथा युवाओं में आत्मविश्वास को बढ़ावा देने में भाषा के महत्व को देखते हुए उन्होंने कहा कि लोगों को अपनी मातृभाषा में बोलने में गर्व का अनुभव करना चाहिए। बाद में, उन्होंने भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा विश्वविद्यालय में आयोजित एक भारत श्रेष्ठ भारत की चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। आगन्तुक पुस्तिका में लिखने के दौरान उन्होंने तेलंगाना और हरियाणा के जोड़ीदार राज्यों की संस्कृति को प्रदर्शित करने में आयोजकों के प्रयासों की सराहना की। लोगों को प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने लिखा कि ऐसी पहलें जोड़ीदार राज्यों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रचारित करने तथा लोगों के बीच आपसी संपर्कों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 का लक्ष्य भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना तथा बच्चों की मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करना है। उन्होंने कहा कि अनिवार्य रूप से उच्चतर शिक्षा तथा तकनीकी पाठ्यक्रमों के लिए भी शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि युवाओं, छात्रों को अपनीं सांस्कृतिक विरासत व मातृभाषा से संपर्क बनाए रखना ज़रूरी।छात्रों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने के महत्व के बारे में बताना ज़रूरी-अपनी मातृभाषा में बोलने पर गर्व का अनुभव होना चाहिए।भारत ख़ूबसूरत मानवीय बोलियों, भाषाओं का एक विश्वप्रसिद्ध अभूतपूर्व संगम है।
— किशन सनमुख़दास भावनानी