ग़ज़ल
कुछ हमारी मुश्किलें कुछ हैं तुम्हारी मुश्किलें।
जिन्दगी जाने क्या -क्या हैं तुम्हारी मुश्किलें।
है बहुत आसान जीना और मरना भी बहुत,
जिन्दगी को न समझना है तुम्हारी मुश्किलें।
रेत, पर्वत, झील, पानी पार करना ही पड़ा,
जिन्दगी के साथ चलना है तुम्हारी मुश्किलें।
उस नदी के साथ बहना और रुकना न कभी,
जिन्दगी बहती नदी सी हैं तुम्हारी मुश्किलें।
साथ में चलना, ठहरना और फिर खामोश होना,
जिन्दगी की चुप्पियों में हैं तुम्हारी मुश्किलें।
— वाई. वेद प्रकाश