हमने देखे हैं
दर्द आशोब के मंज़र भी हमने देखे हैं
आग में जलते हुए घर भी हमने देखे हैं
साथ रहते हुए मासूम – सा बने रहना
उसी के हाथ में खंजर भी हमने देखे हैं
कैसी जरखेज ज़मी है खिली हुई बाली
इसी सिवान में बंजर भी हमने देखे हैं
अच्छे – अच्छों ने महामारी में घुटने टेके
वरना इंसान के तेवर भी हमने देखे हैं
इंतहा दोस्तो हर ज़ुल्म की होती है यहाँ
आज के अहद के बर्बर भी हमने देखे हैं
मुल्क है, आपकी ये जायदाद थोड़ी है
कितने आए – गए ईश्वर भी हमने देखे हैं
— ओम निश्चल