कविता : सपनों की दुनिया
मैं भी बुन रखी थी
अपने सपनों की एक दुनिया
एक झोंका ऐसा आया
बिखर गए सारे धागे
कुछ न बचा सिवाय
एक रीतापन के;
काश मैं भी होती एक चिड़िया
फिर से सजाती अपना घोंसला
एक एक कर चुनती बिखरे तिनकों को
खड़ी कर लेती
अलहदा एक अपनी
सपनों की दुनिया।
— निर्मल कुमार दे