कैसी आजादी की भोर है
जगह-जगह छिपे हुये यहां आदमखोर है
ऐसे लोगों का आजकल देखो जोर हैं
बंद है सुविधा यहां काली तिजोरियों में
और मची है लूट सत्ता के पुजारियों में
भूख भूख का यहां मचा हुआ ही शोर हैं
जगह-जगह छिपे हुये यहां आदमखोर हैं
साधु के वश में है कई खौफनाक चहरे
ऐसे में ईमानदारी किस पड़ाव पर ठहरे
चीजों को छिपा कर लूटता जमाखोर हैं
जगह-जगह छिपे हुये यहां आदमखोर हैं
मूल तो मूल ब्याज से सभी सेठ मस्त हैं
कर्ज में डूबा गोबर अब तक ही त्रस्त हैं
कहें इन्हें कैसी आजादी की भोर हैं
जगह-जगह छिपे हुये यहां आदमखोर हैं
ऊंचे महल वाले रोज़ बिछाते गोटियां
गरीबों से छीने रोटी नोंचे बोटियां
जो खरीदे कानून को उसी का जोर हैं
जगह-जगह छिपे हुये यहां आदमखोर हैं
— रमेश मनोहरा