सच ये भी है
बताओ ऐसा कौन सा काल है
जिसमें आपने स्वार्थ न दिखाया हो,
दूसरों का हिस्सा बेहयाई से न खाया हो,
प्रजा को डराकर,
अपनी उच्चता का भय दिखाकर,
पीढ़ी दर पीढ़ी बने रहे शासकों का मुंहलगा,
कथा कहानियों में खुद को बताते रहे गरीब
और न बन पाए किसी भी का सगा,
जब तक स्वार्थ पलता रहा,
सत्ताधीशों संग मिल सबको छलता रहा,
सत्तावानों का विरोध भी तब किये
जब आपकी सत्ता को कोई चुनौती देने लगा,
आपके अनुसार जो तिरस्कृत रहे
उनसे कोई समान मान काम लेने लगा,
इतिहास आपका झूठों से भरा है,
दमितों की जागरूकता से डरा है,
आज भी दूर नहीं हो पा रहे
चक्रव्यूहों और अमानवीय षड़यंत्रों से,
दूर कभी रहे नहीं शाप वाले मंत्रों से,
जब भी अभागों में एकता बढ़ता जाता है,
तब अभागों को अधिकार दिलाने की
झूठी चिंता आपको सताता है,
स्वीकारो या ना स्वीकारो
एक सच ये भी है,
संख्याबल छोड़ बाकी सबकुछ
आपकी कुंडली के भीतर है
एक सच ये भी है।
— राजेन्द्र लाहिरी