गीतिका/ग़ज़ल

मिल गया

दो अंधे मिले दोनों को सहारा मिल गया।
इक आवारे दिल को दूसरा अवारा मिल गया।

तिनका हाथ जो लगा तो उम्मीद जागी
कि डूबने वाले को किनारा मिल गया।

सब्ज बागों में खो गया दिल कुछ ऐसे कि।
अंधी आंखों को बसंत का नजारा मिल गया ।

मचल उठा दिल आंखों के दीदार से ऐसे।
बच्चे को जैसे खिलोना प्यारा मिल गया ।

मचल रही थी सखीयों के बीच वो ऐसे।
सावन में चूड़ियों वाला बंजारा मिल गया।

गुफ्त गू अंजान से ऐसे कर रही थी बह।
जैसे बच्चे को नकल का सहारा मिल गया।

छोड़ गया था जो इंतहा ज़ख्म देकर राह में।
चौराहे पर वो शख्स दुबारा मिल गया।

— सुदेश दीक्षित

सुदेश दीक्षित

बैजनाथ कांगडा हि प्र मो 9418291465