सबको जुड़ने दो
हिंदी बहु संख्यकों की बोली है ।
सब जनों के मन में पलने दो।
है उदार जग-जन के मन में यह
सबको गले प्रेम से मिलने दो।
हिंदी का जादू जग में सर चढ़कर बोले।
मिश्री-सी मिठास को अब घुलने दो।
लिख रही यह भविष्य का संसार।
ज्ञान के सागर की पतवार बनने दो।
शब्द-शब्द में अमृत रस बरसे।
अब ज्ञान की बाती को जलने दो।
घुल रही चंदन सुगंध की रोली।
विश्व के बाजार में अब फलने दो
निज भाषा का नहीं तोड़ है जग में।
एकता के सूत्र में सबको जुड़ने दो।
— डॉ. कान्ति लाल यादव