सरसा गया सावन
धरा को नेह जल बौछार से नहला गया सावन |
नयन में स्वप्न भर सांसो को फिर महका गया सावन |
घटा रिमझिम बरसती जब ये तन-मन भीग जाता हैं,
ह्रदय में प्रेम की बंसी बजाता आ गया सावन |
नजारे हो गए रंगी धरा धानी हुई सारी,
जमीं से आसमां तक नूर फिर बिखरा गया सावन |
लिए सौगात राखी नेह बहना प्यार दर्शाए ,
कलाई प्रीत की डोरी से फिर बंधवा गया सावन |
पड़े बागों में झूले झूल कजरी गा रही सखियां ,
तराने गूंजते चहुँ दिश फिज़ा में छा गया सावन |
विचारों की कलुषता दूर हो पावन महीने में,
ये भोले नाथ की भक्ती बढ़ा हर्षा गया सावन |
चढ़ाकर जल करें अभिषेक शिव का नाम जपते जो,
उमापति नाथ का वरदान अक्षय पा गया सावन |
सदा शिव को मनाने का “मृदुल” शिवमास ये अनुपम,
ह्रदय में भाव भक्ती का बढ़ा सरसा गया सावन
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”