ग़ज़ल
ज़ख्मी जब भी ईमान होता है
सब्र का इम्तिहान होता है
सच का साथी नहीं यहां कोई
मुखालिफ ये जहान होता है
जब भी आहट ज़रा सी होती है
मुझको तेरा गुमान होता है
अलग दुनिया बसाएगा अपनी
अब ये बच्चा जवान होता है
जज़्बा-ए-सरफरोशी गर हो तो
कतरा-कतरा तूफान होता है
वो समझते हैं बगावत उसको
गर कोई हमज़ुबान होता है
यहां हर आदमी के सीने पर
चोट का इक निशान होता है
खून इंसानियत का हो जब-जब
लाल ये आसमान होता है
आँधियों में चिराग जलते हैं
खुदा जब निगहबान होता है
— भरत मल्होत्रा