ग़ज़ल
सबको ही भाती है हिंदी।
भारत की थाती है हिन्दी।।
रस घोलती सदैव प्यार का।
मिठास ही लाती है हिंदी।।
सभी को मिलाए आपस में।
एकता जताती है हिंदी।।
सहज सरल आसान ही लगे।
बोल में सुहाती है हिंदी।।
विचार – विनिमय करती देखो ।
साथ ही निभाती है हिंदी।।
मृदुता इसमें है भरी हुई।
कोयल – सा गाती है हिंदी।।
ममता बहुत ही लुटाती है।।
अपनत्व जताती है हिन्दी।।
विभिन्न अर्थ भी सब सीखते।
ज्ञान ही बढ़ाती है हिंदी।।
बहुत बृहद ख़ज़ाना ही रखे।
सिखाती संस्कृति है हिंदी।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’