कविता

तू ही मेरा श्रृंगार

संस्कार,सदाचार विचार,आचार
तू ही मेरा श्रृंगार। अलंकार,उपहार
आकार निराकार. सब तेरे ही है प्रकार
नदी,पोखर ताल तलैया तू ही सबकी खेवईया
शाखा, वल्लरी, द्रुम, लता प्रकृति की सुंदर छटा
वर्षा बिजली बादल घटा। खग मृग बाल गोपाल
राम केशव नंदलाल। धूप छांव अंबर धरा
यह सब तो तेरे हैं रूप, तू ना हो तो बोले क्या,
तू ना हो तो सोचे क्या, तू ना हो तो लिखे क्या
तू जननी तू गरीयसी, तू सबकी है प्रेयसी
तू हो तो हम सब निहाल, तू है मेरे देश की भाल,
तू गंगा तू कालिंदी, मेरे हिंद की तू हिंदी।
मेरे हिंद की तू हिंदी।
तू है तो भाव है सब तेरा ही प्रभाव है।
तू अगर ना हो तो बस अभाव ही अभाव है।
तू सब की है परिभाषा तुझसे है सबको आशा
तू सबकी है राष्ट्रभाषा तू सबकी है राष्ट्र भाषा
जय हिन्द जय हिन्दी।

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]