कविता – पूरी उम्र
नज़रों से दूर करने वाले,
पूरी उम्र याद रहते हैं।
शराफ़त है कि,
मन में बसे रहते हैं।
यह जरूरी नहीं है कि,
मन की ख्वाहिशों का असर है,
यह इसलिए कि,
वक्त का वही गुजरा हुआ सफ़र है।
थोड़ी सी मुसीबत क्या आई,
परवाने फ़साना ही बन गये।
उम्मीद जिनसे थी,
वहीं बेगाना बन दूर चले गए।
हरेक पड़ाव पर दुनिया,
तुझ पर कुछ क्या लिखूं,
हकीकत कहूं या यूं ही,
टूटे हुए दिल की,
हर खामोशियों का जिक्र करूं।
हमने ऐतबार की खुशियों का,
जश्न कभी देखा था,
अरमानों को आज़ ढलते ही,
महसूस करता हूं कि,
आख़िर क्या यही जिंदगी का,
सबसे बेहतर तरीका था।
— डॉ. अशोक, पटना