कविता

संगत की रंगत

संगत की रंगत का बाजे चहुं दिस डंका,
कहीं बने अंधे की लाठी, कहीं डुबोएं लंका,
कुसंगति राजा को पल में बना दे रंक फकीरा,
अच्छी संगत काले कोयले को भी बना दे हीरा ।

संगत की रंगत का असर भारी गजब का,
संगत पर निर्भर भविष्य “आनंद” सभी का,
ज्ञानी की संगत ज्ञान के महासागर में डुबोएं,
अज्ञानी की संगत दुर्भाग्य भंवर में फंसे रोएं ।

संगत की रंगत की जादूगरी बड़ी निराली,
बना दे काली अमावस को जगमग दिवाली,
मंद बुद्धि को सन्मार्ग दिखा विद्वान बना दे,
लक्ष्य हीन को दिशा दे विजय श्री चखा दे ।

संगत की रंगत का नशा जैसे पी हो मधुशाला,
बुद्धि के द्वार पर लगा हो बिना चाबी का ताला,
भैंस के आगे बीन बजाए व्यर्थ सज्जन मतवाला,
गिरा दे बड़े बड़े महलों को बन दावानल ज्वाला ।

संगत की रंगत साज श्रृंगार ये जीवन का अनमोल,
समझो न इसको तुम हल्का, बेरंग और गोलमोल,
जीवन की यही है असली दिशा और परिभाषा,
संवारती जीवन भरती आशा या सूनापन निराशा ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु