संस्कारित समाज का दीमक: प्री-वेडिंग फोटोशूट
हमारे सनातन धर्म में शादी-विवाह एक पवित्र आयोजन है। जिसे दो परिवारजन बड़े ही उत्साह, हंसी-खुषी एवं समाज की रजामंदी के साथ आयोजित करते है। इसमें वर-वधू दोनों 33 करोड़ देवी-देवताओं का आह्वान करके जीवन भर सुख-दुःख में साथ निभाने का संकल्प करके परिणय सूत्र में बंधते है।
लेकिन इस तरह के पवित्र आयोजनों में शादी से पहले प्री-वेडिंग फोटो और वीडियों शूट एक आम बात हो गई है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बढ़ते उपयोग, उससे बढ़ती लोकप्रियता और सिर्फ एक स्पाम के लिए आज शादी से पहले दूल्ला-दूल्हन फोटोशूट करवाते हैं। यह फोटोशूट सिर्फ इसलिए किया जाता कि शादी से ठीक कुछ दिन पहले अपने जीवन साथी के साथ बिताये खूबसूरत पलों को कैमरे में कैद कर उन यादों को भविष्य के लिए संग्रह किया जा सके।
शादी से पूर्व इस तरह के फोटोशूट लड़का-लड़की बाग-बगीचे में, किसी हिल स्टेशन एवं समुद्र के किनारे जाकर एक-दूसरे के गले मिलकर करवाते हैं। ताकि उन फोटों को शादी के दिन रिसेप्शन पार्टी में सार्वजनिक रूप से टी.वी. प्रोजेक्टर पर प्रदर्शित किया जा सके।
कुछ प्री-वेडिंग वीडियो तो ऐसे होते हैं, जिन्हें देखकर समाज के लोग शर्मिन्दगी महसूस करने लगते हैं। समाज पर हो रहे दुष्परिणामों को देखते हुए आजकल कुछ समाजों में इस पर बंदिशें भी लगाई जा रही हैं। कई समाजों ने तो इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया हैं। यदि कोई इसका उलंघन करता है तो समाज दोनों पक्षों से जुर्माना तक वसुल करता है। साथ ही जो परिवार ऐसे विडियो अथवा फोटोशूट करवाएगा तो उस शादी में मेहमान सिर्फ शगुन का लिफाफा देकर आयेंगे और खाना न खा कर अपना विरोध प्रदर्शित करेंगे। भविष्य में कहीं समाज के युवाओं पर इसका गलत प्रभाव न पड़े, इसलिए प्री वेडिंग शूटिंग करवाने और इसका समाज में सार्वजनिक प्रदर्शन करने पर प्रतिबंध लगाने की आवाज और अधिक बुलंद होने लगी है।
समाज के लोगों की चिंता इस बात को लेकर भी है कि कहीं आने वाले दिनों में अश्लीलता चरम सीमा को न लांघ जाए। किसी रिसेप्शन पार्टी में प्री-वेडिंग फोटोशूट देखकर समाज के उन युवक-युवतियों का मन भी ऐसा शूट करवाने के लिए मचलने लगा है, जिनका निकट भविष्य में विवाह होने जा रहा है।
शादी से पहले ऐसे फोटो अथवा वीडियों को सार्वजनिक कर देने से शादी की मर्यादा का हनन होता है। दो युवाओं का पवित्र बंधन अंतरंग और निजी संबंध होता है। शादी के पहले इसे सार्वजनिक करने से कभी-कभी अप्रिय स्थिति का सामना भी करना पड़ सकता है। शादी से पहले अपनी निजी फोटो को समाज के सामने प्रदर्शित करना गलत है। पति-पत्नी को अपने संबंधों और आपसी प्यार को गुप्त रखना चाहिए।
कई बार प्री वेडिंग शूटिंग में मर्यादा विहीन दृश्य भी फिल्माए जाते हैं, जैसे दुल्हा-दुल्हन एक-दूसरे की बाँहों में समाए हुए, दुल्हन के कम-से-कम परिधानों के शूट और तो और वे अन्तरंग फोटो जिनको एक पति-पत्नी विवाह के पश्चात् बंद कमरे में ही करते हैं, ऐसे दृश्यों को विवाह के भरे समारोह में स्क्रिन के माध्यम से दिखाया जाता है।
प्रायः देखा जाता है कि ऐसे फोटो शूट परिवार वालों की सहमति से ही होते हैं। जरा कल्पना कीजिए कि आप किसी ऐसी शादी में गए हैं और वहाँ पर एक बड़ी सी स्क्रीन पर दूल्हा-दूल्हन पहले से ही एक-दूसरे की बाँहों में समाए हुए हैं तो ऐसे दृश्य देखकर आपको कैसा लगेगा? आपको यहीं लगेगा कि इन लोगों को हमारे साक्षी होने की आवश्यकता ही नहीं है तो फिर हमें शादी में बुलाया ही क्यों? सनातन संस्कृति में शादी से पूर्व ऐसा खुलापन स्वीकारर्य नहीं है। ये तो पाश्चात्य संस्कृति हैं।
इस तरह के फोटोशूट को सही कहने वाले माता-पिता का प्रायः यही कहना होता हैं कि शादी हमारे बच्चों की है, पैसा हमारा है तो हमारे बच्चों की खुशी के लिए यदि हम उनकी शादी में खर्चा करते है तो इसमें गलत क्या है? जिन बच्चों के माता-पिता के पास यदि पैसा नहीं है तो ऐसा फोटोशूट न करवाए। लेकिन यदि हमारे पास पैसा है और हम करना चाहते है तो समाज हमें करने क्यों नहीं देता। ऐसे धनवान माता-पिताओं की यह बात भी सही है कि इन्सान बच्चों की खुशी के लिए ही सबकुछ करता हैं और बच्चों की खुशी के लिए ऐसा कुछ करते हैं तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है।
लेकिन कोई भी आयोजन कितना सही हैं या कितना गलत इस बात का फैसला इसी से होता हैं कि हमारे समाज पर उसका क्या प्रभाव पड़ रहा है। आज आम इन्सान जिसके पास इतना पैसा नहीं है कि वह ऐसा फोटो शूट करवा सके। अपने बच्चों की खुशी के लिए यदि वो ऐसा फोटो शूट करवाता भी है तो उसे अतिरिक्त कर्जा लेकर करवाना पड़ेगा। इसका दुष्परिणाम यह होगा कि जिस पिता के सिर पर शादी के खर्च को लेकर पहले से इतनी चिंता रहती है और इस प्रकार के फोटो शूट के लिए अतिरिक्त कर्जे का भार उसके सिर पर और बढ़ेगा।
किसी भी शादी में सगाई से लेकर विदाई तक पहले से इतने सारे आयोजन होते रहते हैं, जिनकी तैयारी करते-करते परिवार वालों के पसीने निकल जाते है। उस पर प्री-वेडिंग फोटो शूट को लेकर समाज के अधिकतर माता-पिता चिंता में रहते हैं। हमें चिन्तन करना चाहिए कि- क्या वाकई मेंएक और ऐसे आयोजन की हमें आवश्यकता है?
तारीफ और वाह-वाही के शब्द सुनने के लिए आज के माता-पिता अपने बच्चों की शादियों में इतना खर्चा करते हैं। इसके लिए वे सालों पहले से ही पैसा जमा करना शुरु कर देते हैं और कई तो शादी के कई वर्षों के पश्चात् तक भी उस कर्जे को चुकाते रहते हैं। एक और तो समाज के जागरूक लोग इस बात का गहरा चिंतन कर रहे हैं कि शादियों के खर्चों को कम कैसे किया जाए? इसके लिए वे सामूहिक विवाह, शादियों में तैयार होने वाले व्यंजनों की संख्या पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रहे हैं। लेन-देन (मिलनी) के रूपयों की संख्या तय कर रहे हैं, ताकि समाज के मध्यमवर्गिय और निचले तबके के लोगों को शादी के अनावश्यक खर्चों की चिंता से मुक्ति मिल सकें। दूसरी ओर ये ही धनवान लोग अपने बच्चों की शादियों में अनावष्यक खर्चों के साथ एक नया आयोजन प्री-वेडिंग फोटोशूट के रूप में करवाकर समाज के ज्यादातर लोगों की चिंता बढ़ा रहे हैं।
जिन बच्चों की शादी होने वाली होती है तो उन्हें भी इस बात का चिन्तन करना चाहिए कि ऐसे आयोजन के लिए परिवारजन अतिरिक्त पैसा कहाँ से लायेगा। पैसा कमाने के साधन तो जितने पहले थे उतने ही आज भी रहेंगे। जो व्यक्ति प्राईवेट नौकरी करता है तो उसका वेतन जितना है उतना ही रहेगा। ऐसे आयोजन करने के लिए मालिक या कम्पनी वाले उसका वेतन तो नहीं बढ़ायेंगे। दूसरी ओर व्यापार करने वालों की भी कमाई अचानक तो नहीं बढ़ सकती। ऐसे में लोगों के पास अतिरिक्त धन कहाँ से आयेगा? ऐसे खर्चों को देखते हुए अभिभावक अनैतिक तरीके से पैसा कमाने की कौशिश करंेगे। जिसके चलते रिश्वत और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। ऐसे कार्यक्रम के आयोजन से समाज में अनैतिकता फैलेगी, भ्रष्टाचार बढ़ेगा तो फिर ऐसा फोटोशूट समाज के लिए एक घातक बीमारी ही हैं।
आजकल ऐसी खबरें भी देखने सुनने में आती हैं कि बच्चों की सगाई होने के कुछ माह पष्चात् ही किसी कारणवष रिष्ता टूट गया तथा कुछ विवाहित जोड़े अपनी शादी के कुछ माह पष्चात् ही अलग हो गये। यहां पर यह चिन्तन और भी गहरा हो जाता है कि क्या सगाई के पष्चात् एवं शादी के पूर्व ऐसे फोटो शूट का आयोजन भविष्य में उनके दूसरे स्थान पर हुए रिष्ते पर कितना असर डालेंगे? या उनके भावी गृहस्थ जीवन पर कोई बुरा परिणाम तो नहीं पड़ने वाला है? इस विषय पर भी उनके माता-पिता को चिन्तन करना चाहिए।
मित्रों! यह बीमारी समाज में तेजी से फैल रही हैं क्योंकि हर युवक/युवती चाहते हैं कि वे भी हीरो-हिरोइनों की तरह बडे पर्दे पर दिखे। ऐसे में अपने बच्चों की खुशी के लिए माता-पिता कर्ज लेकर भी उनकी इच्छाएँ पूरी करने की कोशिश करते हैं। आप सभी से मेरा करबद्ध निवेदन हैं कि ऐसी घातक बीमारी को समाज में न फैलने दे, तभी हमारा समाज खुशहाल रहेगा और समाज में नैतिकता के उचित मापदंड स्थापित होंगे।
— राजीव नेपालिया (माथुर)