गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वक्त बेवक्त तू याद आये तो मैं क्या करूं।
दिल कोई और बहला न पाये तो मैं क्या करूं।।

याद करता रहा जिसको सारा जमाना सुनो।
बारहा मुझको ही याद आये तो मैं क्या करूं।।

मैं तो पागल हुई उसके खातिर मेरे यार सुन।
वो किसी गैर का जो हो जाये तो मैं क्या करूं।।

मेरे दिल की सदा वो कभी यार सुनता नही।
दिल मेरा हमसफर यूं जलाये तो मैं क्या करूं।।

खाक में मिल के रूखसत हो जाऊं जहां से अगर।
बाद जाने के गम जो मनाये तो मैं क्या करूं।।

— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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