कविता

दिल थाम होनेवाला घंटा

जैसा प्यारा क्षण में कहानी
आगे जा सकने का समय है वह
जैसा लोक में रहना इससे अल्पमात्र में
विचित्रता रहना लोक है वह
अनेक रंग से रंग चढ़ाते हुए
आसपास घूमते हुए क्षण है वह
मेरा शरीर मन दोनों आज भी उड़ सकते
अद्भूत समय का एक घंटा है वह
नहीं देख सकता है कि
उस दिन में वहाँ इकट्ठे हुए छात्र समूह आज कहाँ हैं
मैं पूछ रहा हूँ कि
उस दिन में सुंदर हुए प्यारा कथानक आज भी ऐसा है
मन कहता है कि
इनाम लेते हुए क्षण में हम की गयी
अनेक चीज़ें आज भी वहाँ पड़ते हैं
मैं सोचता हूँ कि
और ऐसा ही अद्भुत क्षण में
फिर भी अकेला होता है

— अमन्दा

एस. अमन्दा सरत्चन्द्र

श्री लंका

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