एक ओंकार के प्रणेता बाबा नानक
सिख मत के संचालक एंव प्रथम गुरू बाबा नानक को एक-ओंकार के रचयिता माना जाता है। जपुजी, आसा दी वार, बारह माह, रागतुखारी, पट्टी मांझ तथा मल्हार की वार जैसी उच्च कोटि के रचनाएं लिखकर भारत की धरती को, मानवता की सच्ची कदरें-कीमतें बख्शी हैं। गुरू नानक देव जी की बाणी एक ओंकार की ही समस्त शाखाएं हैं। समस्त बाणी सच तथा यथार्थ की बुनियाद पर है जो इन्सानी कदरों कीमतों को उजागर करती है। यह अद्वितीय बाणी है। मानवता के लिए शिक्षाप्रद बाणी है। अंधविश्वास से दूर तथा सबके कल्याण की इलाही बाणी।
एक ओंकार काआकार देखने से ही हृदय की शान्ति मिलती है। इसके उच्चारण से, जाप करने से तन, मन, रूह, हृदय शांत तथा एकाग्र हो जाते हैं। इसके उच्चारण से मनुष्य स्वयं ही पवित्रता तथा आध्यात्मिकता से जुड़ जाता है। एक आनंदमयी अवस्था का एहसास हृदय में तैरता है। समस्त बाणी ऋतुआंे, दिन, वर्ष, माह, क्षण, प्रकृति, ब्रह्मांड, सचखण्ड, धरती, आकाश, पानी, अग्नि, वायु (पांच तत्व), समाज, सच्चाई, रागों, संगीतमय इत्यादि नियमों में संगठित है। समस्त बाणी बहरों (ंवज़न) में है। अनेक भव्य प्रतीकों-बिम्बों, उपमाओं, अलंकारों से भरी हुई है बाणी। एक ओंकार का जाप विश्वास पैदा करता है और यह विश्वास कर्मठता का अस्तित्व उजागर करता है। इस आकार ने परमात्मा के अस्तित्व को सही अर्थ दिए हैं। एक-ओंकार बाणियों की राहनुमाई करता है। इस शब्द की आवाज़, बनावट, उच्चारण इतना शुद्ध है कि मानव में शक्ति, शान्ति, प्रभु का विश्वास पैदा करता है। यह शब्द ही परमात्मा का स्वरूप है। इस शब्द से ही परमात्मा नजर आता है एक ओंकार की बनावट ही प्रभु वाणी का अस्तित्व है।
१का उच्चारण एक है। ओंकार का उच्चारण ओंकार है। सतिनाम, करतापुरख, रिनभओ, निरवैर, अकाल मूरत, अजूनी सैभ्ंग, गुर प्रसादि।। यह मानवता का मूल मंत्र है। मूल मंत्र का अर्थ है प्राथमिक उपदेश। इसके अर्थ इस प्रकार हैंः आकाल पुरख परमात्मा एक है जो सारी सृष्टि में व्यापक है। उसका नाम सदैव अस्तित्व वाला है। यह सारी सृष्टि को पैदा करने वाला है। वह भय से रहित है। वह वैर, दुश्मनी से रहित है। उसका स्वरूप काल से दूर है भाव उस के ऊपर समय का कोई प्रभाव नहीं। वह बचपन, जवानी, वृद्धावस्था, मृत्यु से परे है। वह योनियों में नहीं आता। उसका अस्तित्व, उसका प्रकाश अपने आप से हुआ है। एसे स्वरूप वाला परमात्मा शब्द गुरू सतगुरू की कृपा द्वारा ही मिलता है।
आदि सच, जुगादि सचु।। है भी सच, नानक, होसी भी सच।। यह श्लोक मंगलाचरण जैसा है। इसमें गुरू नानक देव जी ने अपने इष्ट का स्वरूप ब्यान किया है, जिसका जप-सिमरण करने का उपदेश इस सारी बाणी, जप में किया गया है (जपु जी साहिब से), गुरू नानक देव जी की बाणी में शब्दों की मिठास, संदेश, शुद्ध-शांत तथा स्वस्थ कर देता है। प्रेम तथा सेवाभाव उत्पन होते हैं।
बाबा नानक का जन्म 15 नवम्बर सन् 1469 ई. को माता तृप्ता की कोख से, पिता मेहता कल्याण राय जी (बेदी वंश) के घर राय भोए की तलवंडी श्री ननकाना साहिब जिला शेखपुरा (पाकिस्तान) में हुआ। कवि बाबा नानक की शादी बीबी सुलखणी जी सुपुत्री श्री मूल चंद जी बटाला निवासी (जिला गुरदासपुर, पंजाब) के साथ 1487 ई. को हुई। उनके दो सुपुत्र थे- बाबा श्रीचन्द्र जी तथा बाबा लक्ष्मी दास जी।
बाबा नानक जी के श्री गुरू ग्रंथ साहिब में दर्ज 947 शब्द 19 रागों में हैं। उन्होने देश-विदेश के लोगों को रास्ता दिखाया। भाई बाला तथा मरदाना उनके संगी थे। उनका यह संग सांझीवालता तथा धर्म-जाति रहित, मानवतावादी था। उनके जीवन प्रसंग, घटनाएं, यात्राएं भी दुर्लभ तथा संदेश परक हैं। बचपन में उन्होने पांधे, पुरोहित तथा वैद्य को उपदेश दिया। सच्चा सौदा किया, मोदी खाने तेरा तेरा तोलना, चार महान उदासियों (यात्राएं), ऊंच-नीच का भेदभाव खत्म करना, नाम जपना, बांट कर खाना तथा धर्म की कमाई करने की शिक्षा कर्मठता, विभिन्न धर्म के भ्रम, कुरीतियों को तोड़ना भी उनके महान कार्यों में शुमार हैं।
आप हरिद्वार, काशी, गया, ऐमनाबाद, मथुरा, जगन्नाथपुरी, जैसलमेर, अजमेर, पुष्कर आबू, उज्जैन, नादेड़, विदर, रामेश्वरम्म्, संगलादीप, सोमनाथ, द्वारका, ज्वालामुखी, मणिकरण, सुकेत मंडी, चम्बा, गोरखपुर, पीलीभीत, उत्तराकाशी, तिब्बत, लंका, भूटान, नेपाल, चीन, ईरान, गुजरात, काबुल, मुल्तान, सिंध, बलोचिस्तान, मक्का, मदीना, बगदाद, जलालाबाद, हसन अबदाल, पुन्छ, बर्मा आदि कई दूर-दूर के क्षेत्रों में गए।
बाबर, मलिक भागो, जीवन भूमियां, पीर बहलोल, पण्डित ब्रह्मदास, राम बुलार, गोपाल पांधा, हरदयाल, पुरोहित, दौलत खां, लोधी, भाई लालो, भाई मरदाना, मनमुख भागीरथ, दुनी चंद, शेख सज्जन, हमजा गौंस, साल सराए, नूर शाह, कौटा राक्षस, वलि कंधारी, राजा शिभनाथ इत्यादि को अपने उपदेश विचारों से प्रभावित किया तथा शुभ कर्म, करनी, कथनी तथा कर्मठता का उपदेश दिया। उनके समकालीन बादशाह, बहिलोल, सिकंदर, इब्राहीम लोधी, बाबर तथा हुमायंू हुए हैं।
बाबा नानक को उर्दू, गुरमुखी, संस्कृत, फारसी आदि विद्या (भाषा) का ज्ञान था। उन्होने लगभग 22 वर्ष देश विदेश में पैदल चल कर धर्म प्रचार किया। अंधविश्वास तथा अधर्म का खण्डन किया।
आपने पांच बड़ी उदासियां की। प्रथम उदासी (यात्रा) में आप ने अंधविश्वास के खिलाफ प्रचार किया। आप प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ जैसे के जगन नाथपुरी, गया, बनारस, हरिद्वार, कुरूक्षेत्र आदि स्थानों में भी गए। द्वितीय उदासी में आप पंजाब से संगलदीप (लंका) तक गए तथा लोगों के रूबरू हुए तथा उनको सही मार्ग पर चलने का संदेश दिया।
— बलविन्दर बालम