व्यंग-रील रोगियों के चित को बड़ी शान्ती मिलती है
जब आपके अंदर भक्ति का भाव नही है, एक सरल स्वभाव नही है, प्रकृति से लगाव नही है और किसी का आपके ऊपर कोई प्रभाव नही है, तो बगुला भक्ति का दिखावा करने की क्या जरूरत है और पूजा पाठ करने के लिये लम्बे ताम झाम से क्या फायदा! वर्तमान समय में आस्था और श्रद्धा भाव का जो विशाल सागर लहराता हुआ देखने को मिल रहा है इसे देखकर तो यही लगता है कि समाज के सभी लोग बहुत संस्कारी हो गये हैं, छल कपट दूर दूर तक चिराग लेकर ढूढ़ने पर भी नही मिलेगा अत्याचार तो पृथ्वी से नाश ही हो गया होगा, व्याभिचार की किसी के अंदर धारणा ही उत्पन्न नही होती होगी, भ्रष्टाचार तो कहीं देखने को भी नही मिलता होगा किन्तु ऐसा बिल्कुल नही है, आज के लोग संगीतमयी ज्ञान गंगा में इस तरह से नहाने लगें है कि रामचरित मानस के पाठ में जब रावण द्वारा सीता का हरण किया जाता है उस दौरान भी लोग ढोल हारमोनिय की साज में मस्त रहते हैं जब राम ब्याकुल अवस्था में अपनी पत्नी को तलाशने के लिये खग मृग से पता पूंछते हैं तब भी ढोलक की थाप आसमान छूती है ऐसे लोग न तो कोई भाव रखते हैं और न ही कोई भाव को देखते हैं बस कार्यक्रम सकुशल संपन्न होना चाहिए जबकि हर पूजा पद्यति यही कहती है शांत चित करके और शोरगुल से परहेज करते हुये पूरे श्रद्धा भाव और विश्वास के साथ पूजा करनी चाहिए इस प्रकार की पूजा करने से हमारे आस पास के जीव जन्तुओं को भी कोई परेशानी नही होती है और ब्रम्हांड में वास कर रहे देवी देवताओं के पास आपके अन्तःकरण की प्रार्थना भी बड़ी सुगता से पहुंचती है, शायद आज के भक्तिरस का स्वाद कबीर दास जी ने सात सौ वर्ष पूर्व ही चख लिया था इसीलिये उन्होने लिखा था कि भक्ति भाव भादौ नदी सबै रही घहराय, सरिता सोई सराहिये जो जेठ मास ठहराय।
आधुनिक युग में आस्था और भक्ति के नाम पर रंगारंग कार्यक्रमों की बछौर अधिक देखने को मिल रही है यहां पर बिन भाव की भक्ति हाहाकार मचाती हुयी नजर आ रही है वहीं दया भक्ति की भावना से ओतप्रोत चार लोग मिलकर एक व्यक्ति को भण्डारे का प्रसाद देते हैं और उसकी सेल्फी लेकर फिर विशाल भण्डारे के नाम से सोशलमीडिया की नदी में प्रवाहित करके पूर्ण आहूति करते हैं फिर क्या मित्रमण्डली द्वारा उस क्रिया पर प्रतिक्रिया की बछौर की जाती है, ऐसे दयालु कृपालु हृदय वाले इतने में ही संतुष्ट हो जायें ये तो हो ही नही सकता अब जेठ मास में लगाया गया प्याऊ सोशलमीडिया पर बरसात के मघा पूर्वा नक्षत्र आने तक पानी उडेलता रहता है अब प्यास बुझा कर विशाल हृदय वालों को शान्ती कहां मिलती है अब ठिठुरन होने लगी हांड कपाउ कडाके की ठंड में मोम की भांति हृदय वाले वाले दांत किटकिटाना कहां देख पाते हैं फिर निकल पड़ते हैं गरीब व असहाय लोगों को कंबल देने के लिये, कंबल देकर तस्वीर लेकर फिर सोशलमीडिया की अविरल धारा में प्रवाह कर दी जाती है धीरे धीरे यही धारा कलकल करती हुयी तस्वीर को लेकर जेठ बैसाख की तपती दोपहरी में कंबल ओढे़ नजर आने लगती हैं। अब भगवान ने सबको ऐसा हृदय दे रखा है कि नवरात्रि के पवित्र दिन शुरू हो जायें और सुकून से पूजा अर्चना का आनन्द उठायें ये कहां संभव है! पवित्र शारदीय नवरात्रि के दिनों में एक बड़े पण्डाल की व्यवस्था करके मूर्ति की स्थापना की जाती है नव दिनों तक जगह- जगह पर माता रानी के नाम पर जगरातों का भी आयोजन किया जाता है इसी दौरान गीत संगीत के माध्यम से भक्ति की ऐसी गंगा का प्रवाह किया जाता है कि नव रातों के कार्यक्रम में आस पास के मदिरालयों में अचानक से मदिरा की खपत दो से तीनगुना बढ़ जाती है और कार्यक्रम स्थल के आस पास खेत व खलिहानों में मादक पदार्थों के अवशेष भी अधिक मात्रा में मिलने लगते हैं, नवरातों में भक्ति की जो ज्वाला जलायी जाती उसका विसर्जन भी बड़ी धूमधाम से गाजे बाजे के साथ किया जाता है इसी दौरान आस पास या दूरदराज से विसर्जन को लेकर हुयी मौतों का आंकडा दूसरे दिन के समाचार पत्रों में पढ़ने व देखने को मिलता है, और सुबह शाम शेरावली की आरती के समय गला फाड़-फाड़ कर यह गाने वाले कि नही मांगते धन और दौलत ना सोंना ना चांदी मां वही व्यक्ति कार्यक्रम के हिसाब को लेकर कहीं कहीं पर लड़ते और झगड़ते भी देखे जाते हैं।
वर्तमान समय के लोगों द्वारा आस्था व भक्ति के नाम पर चार प्रकार की यात्राएं की जाती है पहली वह है जो लोग अपने पूर्वजों के तरपण के लिये पिण्डदान कर चार धाम की यात्रा के लिये घरों से निकलते हैं और विधिवत पूजा पाठ करके और सात्विक आहार के साथ घर से प्रस्थान करते हैं। दूसरे वह लोग हैं जो रोजमर्रा के कार्यों से ऊब चुके होते हैं और मन बहलाने के लिये एवं मानसिक तनाव दूर करने के लिये धार्मिक एवं प्राकृतिक स्थल को देखने के लिये घर से निकलते हैं, तीसरे वह लोग हैं जो धार्मिक यात्रा को ट्रिप की नजर से देखते हैं और सारी सुख सुविधा का ख्याल रखते हुये एवं मौसम के अनुकूल क्षेत्र का चुनाव करके धार्मिक यात्रा के लिये घरों से प्रस्थान करते हैं इसमें अधिकांश लोग ऐसे भी होते हैं जो सिर्फ धार्मिक स्थलों पर जाने का दिखावा करते हैं और वहां जाकर भी संसारिक विषय भोगों में रत रहते हैं अधिकांश ऐसे वैभवशाली एवं सम्पन्न लोग भी मंदिर के दर्शन का बहाना लेकर घर से निकलते हैं जिनको नंगे पांव चलने में शर्म आती है किन्तु अर्धनग्नता के साथ उनके ही लोग रील बनाने में मस्त दिखायी पड़ते हैं। रील यात्रा जी हां! यह भी यात्रा आज के रील रोगियों को खूब भा रही है क्योंकि इस यात्रा में रील रोगियों के चित को बड़ी शान्ती मिलती है और सुकून से नये नये दृष्यों के बीच अपना दर्द साझा करना शुरू कर देते हैं ये रील रोगी भक्तिभाव व आस्था को पटखनी देते हुये हर अमीबा पैरामिशियम की तरह रूप बदलते देखने को मिल जाते हैं इन रोगियों को न तो भाव की जरूरत है और न ही भगवान की बस इनकी रील जबदरस्त आनी चाहिए ताकि सोशलमीडिया की महानदी में यह लिख कर प्रवाहित कर सकें कि आज भगवान के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ यही नही अधिकांश भक्ति में भावुक लोग नृत्यकला की सारी कलाएं कैमरे के सम्मुख एवं मंदिर के सम्मुख तोड़ मरोड़ कर रख देते हैं और उस विहंगम दृष्य को अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर लेते हैं फिर किस्तों में एक एक करके विभिन्न सोशलमीडिया प्लेट फार्म पर उडेल देते हैं फिर लाईक सबस्क्राइब कमेंट के माध्यम से यात्रा मंगलमय होना शुरू हो जाती है।
राजकुमार तिवारी ‘‘राज’’
बाराबंकी