गीत/नवगीत

बहुत याद आओगे

मत जाओ तुम गणराज, बहुत याद आओगे
फिर एक बरस तक नाथ, हमें तरसाओगे

ना फूलों की लड़ियाँ होगी, रंग-बिरंगी गलियाँ होगी
ना बच्चों की टोली होगी, चंदन-कुमकुम-रोली होगी
ना मोदक जब भोग मिलेगा, कसम बहुत पछताओगे
मत जाओ तुम गणराज, बहुत याद आओगे।1।

हमने माँ-सा लाड़ दिया है, बाबुल-सा भी प्यार किया है
सुध-बुध सारी तज के भगवन, अपना सबकुछ वार दिया है
चाहोगे गर हमें भुलाना, पर ना बिसरा पाओगे
मत जाओ तुम गणराज, बहुत याद आओगे।2।

पेड़-परिंदे जग व्याकुल है, नीलगगन भी पग धोता है
नीर बहाते जलचर-थलचर, माटी का कण-कण रोता है
करूणा-सागर करूणा का ऐसा सागर ना पाओगे
मत जाओ तुम गणराज, बहुत याद आओगे।3।

सूना होता भवन हमारा, आँगन सूना, सूना द्वारा
छोड़ चले हो बीच भँवर में, तेज धार और दूर किनारा
तारणहार बने रहने की, कैसे रीत निभाओगे
मत जाओ तुम गणराज, बहुत याद आओगे।4।

जाते-जाते सिद्धिविनायक, इतना सा उपकार करो
विघ्नविनाशक इस भारत के दुष्टों का संहार करो
क्या इतनी माँग ‘शरद’ की, अब भी ना स्वीकारोगे?
मत जाओ तुम गणराज, बहुत याद आओगे।5।

— शरद सुनेरी