कविता

व्यंग्य कविता – आ जाओ बंटाधार करो

इंसां मरता है मर जाए,
बीमारी से ही गुजर जाए,
पर जानवरों का सही इलाज करो,
इंसानियत छोड़ो साथी
पशुवत अंदाज धरो,
राजनीतिक माताओं का तुम
भरपूर सेवा सत्कार करो,
परंपरा ही सबसे अच्छी
विज्ञान का अब चीरफाड़ करो,
वैज्ञानिक चेतना होता क्या है,
नहीं आस्था इसमें धरम दया है,
देशप्रेम अब छोड़ भी दो,
रिश्वत की ओर रुख मोड़ भी दो,
बलात्कारी जब छूट के आए
फूलमाला ले जय जयकार करो,
आ जाओ बंटाधार करो,
कसमें झूठी खाओ जी,
झूठ खूब फैलाओ जी,
मरोड़ दो गर्दन सच का और
गलत को सही ठहराओ जी,
न करो कभी वतन की सेवा
पर देशप्रेम का चीत्कार करो,
आ जाओ बंटाधार करो।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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