कविता

कविता – अपना घर।

खूबसूरत बगीया है,
समन्दर का रहस्य।
सही मायने में है,
जन्नत है हमेशा जो है नमस्य।

खुशियां बेशूमार मिले,
शान्त यहां जो बैठूं मैं।
तबीयत लगने लगा है अब,
घर में आऊं जैसे तब।

इसकी सोहबत में रहना ही,
खुशियां देती हमें अपार।
जब जब हमें मिला है ठोकर,
बना यही घर तब,
मेरा एक सुखद संसार।

छोटी सी गुदगुदी है देती,
सुन्दर बगिया में दिखता एक रंग।
घर पर आते ही मिलता,
उल्लास से भरपूर उमंग।

सुख-समृद्धि बनी हुई है,
आज़ भी है एक पहेली।
अपने हक़ की पहली पसंद है,
फसाने सी अपनी हवेली।

जन्नत की दुनिया में लगता,
सुन्दर बगिया बनकर है तैयार।
इस घर की दुनिया के आगे,
बड़ी हवेलियां है बेकार।

उम्मीदों पर खरा उतरने में,
सबसे बेहतर है यह संसार।
घर पर ही मिलता है सबको,
खुशियों का हर दीदार।

— डॉ. अशोक, पटना

डॉ. अशोक कुमार शर्मा

पिता: स्व ० यू ०आर० शर्मा माता: स्व ० सहोदर देवी जन्म तिथि: ०७.०५.१९६० जन्मस्थान: जमशेदपुर शिक्षा: पीएचडी सम्प्रति: सेवानिवृत्त पदाधिकारी प्रकाशित कृतियां: क्षितिज - लघुकथा संग्रह, गुलदस्ता - लघुकथा संग्रह, गुलमोहर - लघुकथा संग्रह, शेफालिका - लघुकथा संग्रह, रजनीगंधा - लघुकथा संग्रह कालमेघ - लघुकथा संग्रह कुमुदिनी - लघुकथा संग्रह [ अन्तिम चरण में ] पक्षियों की एकता की शक्ति - बाल कहानी, चिंटू लोमड़ी की चालाकी - बाल कहानी, रियान कौआ की झूठी चाल - बाल कहानी, खरगोश की बुद्धिमत्ता ने शेर को सीख दी , बाल लघुकथाएं, सम्मान और पुरस्कार: काव्य गौरव सम्मान, साहित्य सेवा सम्मान, कविवर गोपाल सिंह नेपाली काव्य शिरोमणि अवार्ड, पत्राचार सम्पूर्ण: ४०१, ओम् निलय एपार्टमेंट, खेतान लेन, वेस्ट बोरिंग केनाल रोड, पटना -८००००१, बिहार। दूरभाष: ०६१२-२५५७३४७ ९००६२३८७७७ ईमेल - [email protected]

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