लघुकथा

श्राद्ध

महेश के पापा का आज श्राद्ध है। उसके बच्चे भी अपनी माता पिता के साथ काम करवा रहे है, क्योंकि महेश की पत्नी राधा की तबीयत ठीक नहीं थी। सुबह सब नहा धोकर सबने उनकी तस्वीर के आगे हाथ जोड़े, फिर महेश ने तर्पण किया। राधा ने अपने ससुर की पसंद का खाना श्रद्धा से बनाया। फिर महेश ने गाय, कोंवे को खीर खिलाई है। थोड़ी देर बाद पंडितजी भी आ गए। उनको महेश ने आदरपूर्वक भोजन कराया और यथाशक्ति उपहार भी दिया। उनके जाने के बाद बच्चे महेश पूछने लगे कि हम श्राद्ध क्यों करते हैं। महेश ने बोला, “बच्चो, जो हमारे पूर्वज होते है। वो इस महीने में पहंद्र दिन के लिए धरती पर आते हैं। वो हमारे आसपास ही होते हैं लेकिन हम उन्हें देख नहीं पाते हैं उनकी जिस तिथि को मृत्यु होती है। उस दिन हम तर्पण करके उनकी पसंद का भोजन बनाकर उनके रूप में पंडितजी को खिलाते हैं। जिससे उनकी आत्मा तृप्त होती है वह हमें बहुत सारा आशीष देते हैं।”
बच्चों को यह समझाते हुए अपने माता पिता की याद आ गई।

— पूनम गुप्ता

पूनम गुप्ता

मेरी तीन कविताये बुक में प्रकाशित हो चुकी है भोपाल मध्यप्रदेश

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