‘चार्वाक’ को पैदा करने के लिये हम ही जिम्मेदार हैं
धर्मगुरुओं द्वारा जब -जब धर्म, अध्यात्म, योग, कर्मकांड की आड में पाखंड, ढोंग, शोषण, भेदभाव, ऊंच -नीच का गंदा खेल खेला जायेगा, तब -तब विरोचन,बृहस्पति, लोकायत,चार्वाक,गोशाल, वेलट्टिपुत्त, कात्यायन, महावीर,सिद्धार्थ आदि के भौतिकवाद, अनित्यवाद,भाग्यवाद, उन्मुक्त भोगवाद आदि विचारधाराओं को उठ खड़े होने का मौका मिल ही जायेगा!इसे रोकना नामुमकिन है! समकालीन ओशो रजनीश को पैदा करने के लिये हम और हमारे धर्मगुरु ही जिम्मेदार हैं!गुर, ग्रंथ, विधि आदि को नकारने वाले कृष्णमूर्ति को पैदा करने के लिये परिस्थितियों को मंगल ग्रह ने पैदा नहीं किया था, अपितु हमने और हमारे धर्मगुरुओं ने ही पैदा किया था!स्वामी दयानंद सरस्वती को पैदा होने में धर्म, अध्यात्म, योग, दर्शनशास्त्र, पूजापाठ, मूर्तिपूजा, बलि प्रथा, वेदों की उपेउ और मनमानी व्याख्याएं जिम्मेदार हैं! पिछले 150 वर्षों के दौरान अपने आपको परमात्मा का दलाल मानने वाले विभिन्न नकली बाबा, भगवान्,गुरु, पुरोहित, संन्यासी, स्वामी, मुनि आदि क्यों पैदा हो गये हैं? ये सारे मिलकर सनातन को नष्ट करने पर लगे हुये हैं! इन सनातन विरोधी तथाकथित धर्मगुरुओं के पैदा होने के लिये कोई बाहरी शक्ति नहीं अपितु हमारी धरातलीय पृष्ठभूमि जिम्मेदार है! सनातन धर्म और संस्कृति को इतना नुकसान यवन, मंगोल, मुगल, अंग्रेज भी नहीं पहुंचा पाये थे, जितना नुकसान पिछले 150 वर्षों के दौरान पैदा हुये नामदानियों,भक्तिमार्गियों,अद्वैतवादियों, शून्यवादियों, यावादियों, गीतावादियों, भागवतवादियों, श्रीराम- श्रीकृष्ण कथाकारों, मुरलीवादियों, झाडफूंकियों, तांत्रिकों, ज्योतिषियों,योगाभ्यास की आड में शारीरिक उछलकूद सिखाने वाले व्यापारी बाबाओं तथा इन सबसे साठगांठ करके सत्ता पर कब्जा करने वाले नेताओं ने बहुत अधिक नुकसान पहुंचाया है!भारतीय विश्वविद्यालयों में कहीं भी सनातन परंपरा के दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र,नीतिशास्त्र, अध्यात्म, योगाभ्यास, साधना तथा संस्कृति और भारती हिंदी आदि भाषाओं के अध्ययन, अध्यापन, शोधादि की व्यवस्था नहीं है!
जब हरेक क्षेत्र में भारत का माहौल इतना खराब है तो फिर सनातन धर्म और संस्कृति के बचने की संभावना कहीं भी नजर नहीं आती है! जो भी सत्ता पर कब्जा कर लेता है, वही पश्चिम का अंधानुकरण करके भारत और भारतीयता की पीठ में खंजर घोंपने लगता है! और तो और हिन्दू हितकारी कहे जाने वालों ने तो सनातन के विरोध की सारी सीमाओं को तोड दिया है! दुनिया के सबसे बडे और कमाऊ मंदिर कहे जाने वाले तिरुपति तथा अयोध्या में भी गाय,गधे, घोड़े, खच्चर, भेड, बकरी, मछली की चर्बी से बने प्रसाद को खिला दिया है! हिन्दू हितैषियों के शासनकाल में यह सब अनाचार होता रहा है! लेकिन इसके लिये कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है! देश के साथ में कांग्रेस भाजपा का खेल खेला जा रहा है!इस मिलावट को पूजारी नहीं बतला पाये, लेकिन विज्ञान ने बतला दिया है! इस तरह के घृणित ढंग से सनातन धर्म और संस्कृति को बर्बाद किया जा रहा है!बर्बादी को करने वाले सभी हमारे अपने ही लोग या नेता या अधिकारी हैं!
चार्वाक के सहारे के बिना अध्यात्म एक ढोंग बनकर रह जाता है! अध्यात्म की फसल चार्वाक की भूमि पर ही बोई जाती है! यदि चार्वाक फसल के लिये भूमि है तो अध्यात्म फल और फूल है! व्यक्ति की भौतिक जरुरतों के पूरा हुये बिना अध्यात्म की तरफ गति नहीं हो सकती! पेट में जब तक अन्न नहीं जायेगा, तब तक अध्यात्म के बारे में विचार करना भी बेवकूफी है! भूखे भजन न होई गोपाला, ये लो अपनी कंठी माला!जो लोग बेरोजगारी, भूखमरी और अर्थाभाव के कारण मारे मारे घूम रहे हैं, पहले उनकी इन प्राथमिक जरुरतों का पूरा किया जाना आवश्यक है! हमारे तथाकथित बाबा, संत, योगी ,धर्मगुरु आदि सभी मिलकर अमीर, गरीब, भूखे लोगों को अध्यात्म में दीक्षित कर रहे हैं! यह कोरी मूढता है! यह सिर्फ संप्रदाय को बढाने का प्रयास है! यह सिर्फ भीड को बढाना है! यह सिर्फ निठल्ले लोगों के लिये टाईमपास है!जो कुछ भी नहीं कर सकते हैं, वो बाबाओं के पास आकर दीक्षा ले लेते हैं!ऐसे निठल्ले लोगों की भीड भारत की अर्थव्यवस्था पर एक बोझ है!किसी भी प्रकार के उत्पादन में इस भीड का कोई योगदान नहीं है! भारत में ऐसे निठल्ले भोजनभट्ट लोगों की तादाद दस करोड़ के आसपास है!लेकिन इनका अध्यात्म से दूर दूर तक भी कोई लेना देना नहीं है! 140 करोड़ की आबादी के भारत में दस करोड़ निठल्ले लोगों की भीड़ भारत की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के लिये काफी है! राजनीतिक अव्यवस्था और नासमझी की वजह से भारत में वैसे भी रोजगार नहीं हैं! ऊपर से अध्यात्म और धर्म की आड में बाबाओं, संतों,भगवानों,स्वामियों, संन्यासियों द्वारा दीक्षित किये गये निठल्ले लोगों की यह भूखी भीड?धार्मिक आजादी का यह तो मतलब नहीं है कि इस तरह से निठल्ले पेटुओं की भीड को तैयार कर लिया जाये! लेकिन भारत में यह सब हो रहा है!झाडफूंक, नामदान,शब्द धुन,नादानुसंधान, सचखंड, अनाहत,मुरली,कपालभाति, शक्तिपात, संन्यास, दीक्षा, कनफूंक, कनकट, सेवा, मोक्ष आदि की आड लेकर तमाशा करने न तो राष्ट्र की सेहत के लिये ठीक है तथा न ही व्यक्ति के बाहरी भीतरी विकास के लिये सही है!
जब इस तरह की मूढताएं, बेवकूफियां,पागलपन, पाखंड, ढोंग आदि प्रचलित हो जाते हैं तो इनको उखाडने के लिये चार्वाक, लोकायत, महावीर,गौतम बुद्ध का पैदा होना आवश्यक हो जाता है! ढोंगी बाबा लोग फिर भी चुप नहीं बैठते हैं! अपितु प्रचार करने लगते हैं कि सनातन धर्म और संस्कृति खतरे में हैं! फिर ये सनातन धर्म और संस्कृति को बचाने की आड में अपना धंधा शुरू कर देते हैं! धूर्त नेताओं का इन्हें भरपूर सहयोग मिलता है!ऐसे विषम हालात में फिलहाल भारतभूमि चार्वाक दर्शनशास्त्र की उपजाऊ भूमि है! भारतीय राजनीतिक,धार्मिक, नैतिक परिवेश में अध्यात्म के फूल नहीं अपितु उन्मुक्त भोगवादी उपयोगितावादी परिवेश तैयार हो गया है! लोग पागलों की तरह डोंकी से विदेशों में रोजगार की तलाश में घूम रहे हैं! मिलती है सिर्फ प्रताडना!मिलता है सिर्फ धोखा!
केवल भौतिकता की उपजाऊ भूमि पर ही अध्यात्म की ऊंचाइयों को जाना जा सकता है!पाश्चात्य लोग भौतिकता के लिये पागल हैं तो भारतीय लोग अध्यात्म की आड लेकर एक अन्य ढंग से भौतिकता के ही दीवाने हैं! दोनों बाहरी जगत् में आसक्त हैं! और जो बाहरी जगत् यानि इंद्रियों के भोगों में आसक्त हैं, वही तो चार्वाक हैं! पूर्व और पश्चिम सभी चार्वाक बने बैठे हैं! लेकिन यहाँ भी यह ध्यान रखने की बात है कि इन्होंने चार्वाक के पाखंड और ढोंग का विरोध करने वाले पक्ष को विस्मृत कर दिया है! केवल भोग वाले पक्ष को ही प्रधानता दी है!
— आचार्य शीलक राम