गीत/नवगीत

राह तुम्हारी तकते-तकते

राह तुम्हारी तकते-तकते,
जाने कितने मौसम बीते!

आंखों में हमने बोये थे,
साथ-साथ रहने के सपने।
किंतु तरुण मन कैसे जाने,
सपने कभी न होते अपने।।
इन सूनी-सूनी आंखों ने,
हारे मिलन, जुदाई जीते।……….(१)

यादों के मेले में हम-तुम,
जाने कितने रहे अकेले।
विरही पाट नदी के हैं हम,
निर्मम धारा हमसे खेले।।
नाजुक दिल के खंड-खंड को,
बीत रहा युग सीते-सीते।………..(२)

दुधिया केशों के झुरमुट से,
देख रहा हूं आंखें मीचे।
शायद आ पाओ तुम मिलने,
डोर सांस की खींचे-खीचे।।
जीवन की अंतिम बेला भी,
गुजर रही ग़म पीते-पीते।………..(३)

— डॉ. अवधेश कुमार अवध

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 [email protected] शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन