राह तुम्हारी तकते-तकते
राह तुम्हारी तकते-तकते,
जाने कितने मौसम बीते!
आंखों में हमने बोये थे,
साथ-साथ रहने के सपने।
किंतु तरुण मन कैसे जाने,
सपने कभी न होते अपने।।
इन सूनी-सूनी आंखों ने,
हारे मिलन, जुदाई जीते।……….(१)
यादों के मेले में हम-तुम,
जाने कितने रहे अकेले।
विरही पाट नदी के हैं हम,
निर्मम धारा हमसे खेले।।
नाजुक दिल के खंड-खंड को,
बीत रहा युग सीते-सीते।………..(२)
दुधिया केशों के झुरमुट से,
देख रहा हूं आंखें मीचे।
शायद आ पाओ तुम मिलने,
डोर सांस की खींचे-खीचे।।
जीवन की अंतिम बेला भी,
गुजर रही ग़म पीते-पीते।………..(३)
— डॉ. अवधेश कुमार अवध