धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

नारी-शक्ति के प्रतिष्ठा का पर्व नवरात्रि

नवरात्रि पर्व हिंदुओं का प्रमुख और पावन पर्व के रूप म माना जाता है। इस पर्व की प्रतिक्षा सम्मयक भारत वासियों को रहती है। इस पर्व को अलग-अलग प्रांत में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। इसे कहीं नवरात्रि, तो कहीं नवरात्र, तो कहीं नवराते, या फिर जगराता के नाम से जाना जाता है। इसी कारण इसका कुछ ज्यादा ही महत्व बढ़ जाता है। क्योंकि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा में ही हमारे भारत में हिंदूओं के द्वारा नववर्ष मनाया जाता है। और दूसरा सबसे प्रमुख और धार्मिक कारण यह भी है कि इस पर्व में नारी-शक्ति का प्रतिष्ठापन भी किया जाता है।जिसमें नवकन्या के रूप म देवी स्वरूपा नारियों की पूजा-अर्चना की जाती है। यही हमारे देश की सबले बड़ी महिमा और विशेषता है।
नवरात्रि शब्द संस्कृत शब्द से निकला है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “नवरात”।
इसके अलावा नवरात्रि को “नवअहोरात” भी कहा जाता है। इसका मतलब यह है कि विशेष रात। इस समय में शक्ति के नवरूपों की उपासना की जाती है। नवरात्रि को सिद्धि का प्रतीक भी माना जाता है।भारत में हमारे सिद्ध पुरुषों के द्वारा दिन
की अपेक्षा रात्रि को विशेष महत्व दिया गया है। इसी कारण तो दीपावली, होली, और नवरात्रि को रात में मनाने की परम्परा है।यदि ऐसी कोई बात नही होती तो नवरात्रि न कहके नवदिन कहा जाता। साधना की दृष्टि से शारदीय और चैत्र मास को विशेष
महत्व का माना जाता है।इन दोनों पर्व में जनमानस आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति को प्राप्त करते हैं। इन शक्तियों को प्राप्त करने के लिए नाना प्रकार के व्रत, संयम , नियम, भजन किर्तन, योग-साधना आदि को किया जाता है।कई एक साधक रात में सिद्धासन करके आंतरिक त्राटक के द्वारा बीज मंत्रों की साधना करते हैं। नवरात का समय जागरण काल, कहलाता है। इस समय सृष्टि में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है। और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती जाती है। इस प्रकार से नवरात्र में मात्र और मात्र देवी के नवस्वरूप की उपासना, अराधना की जाती है।
वैसे तो यह नवरात्र वर्ष भर में चार बार आता है पर आश्विन मास और चैत्र मास का विशेष
महत्व होता है। और इस नवरात्र में महासरस्वती, महालक्ष्मी, महाकाली के नवस्वरुप की
विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।इनका नाम और स्थान कुछ इस प्रकार से है-
योगमाया-नन्दादेवी, विंध्यवासिनी-शक्तिपीठ, रक्तदन्तिका-साथुर, शाकम्भरी- सहारनपुर, दुर्गा-काशीभीम-पिंजौर, अउ भ्रामरी-भ्रमराम्बा शक्तिपीठ। यही सब देवियाँ नवदुर्गा के रूप कहलाते हैं। इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि यह नवरात्र देवियों की आराधना के माध्यम से नारियों की प्रतिष्ठा और सम्मान का पर्व है।यही हमारे देश की सबले बड़ी विशेषता है।जिसको सम्मयक देशवासी पुरी श्रद्धा, भक्ति, विश्वास और
धूम-धाम के साथ मनाता है। पर दूसरा पक्ष यह भी है कि जो श्रद्धा, भक्ति, विश्वास इन नवरात्र पक्ष में देखने को मिलता है, वह क्षणिक होता है।आज स्थिति भयावह हो चुकी है, आज नारियों के मान-सम्मान का ह्रास हो रहा है।जो मानव सामाज के लिए दुर्भाग्य की बात है।और नारी वही है जो हमारी मां, बेटी, बहन, पत्नी ही है।अपनों के प्रति ऐसा बर्ताव, ऐसी बर्बरता, जो चिंता का विषय है।आज इस पर गहन, मनन, चिंतन करने की आवश्यकता है। इस पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578

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