किसी के बस की बात नहीं
पाखंडवाद को खत्म कर जाना
अभी किसी के बस की बात नहीं,
मदमस्त हो किस ओर जा रहे
किसी को भी आभास नहीं,
उन्नति की राहों में अनेकों रोड़े हैं,
अपना ही मस्तिष्क किनके कदमों में छोड़ें हैं,
पतले रस्सों पर चलने वाले
संतुलन बना नहीं चल रहे,
एक पक्षीय राह चुन रीति नीति को छल रहे,
बाजार में आ जाए काश ऐसी कोई दवाई,
लोग स्वस्थ हो छोड़ दें अपनी अपनी ढिठाई,
विधान की व्याख्या सब
अपने हिसाब से कर रहे,
व्यवस्था भी बिगड़ रहा नहीं कोई सुधर रहे,
कर्तव्यों को भी देखो अब
क्या होना था कर्तव्य,
ऐसे ही रहे तो एक दिन हो जाएंगे स्तब्ध,
वैज्ञानिकता की बातों को
क्यों नहीं अपना रहे,
चैतन्य नहीं मूढ़ हो
अपने भविष्य को धता बता रहे,
धूर्त धूर्तता छोड़ देगा
रखो इस बात की आस नहीं,
पाखंडवाद को खत्म कर जाना
अभी किसी के बस की बात नहीं।
— राजेन्द्र लाहिरी