गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

अब सताना नहीं कि तुझ से कहें।
कर बहाना नहीं कि तुझ से कहें।।

प्यार करके सनम छुपाना नहीं।
ये सुनाना नहीं कि तुझ से कहें।।

देख महफ़िल पड़ी अभी सूनी – सी।
आज गाना नहीं कि तुझ से कहें।।

अब चलें साथ तो हम निभा कर रहें।
दूर जाना नहीं कि तुझ से कहें।।

आशिक़ी मिट सके न हम ये जानते।
ये ज़माना नहीं कि तुझ से कहें।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’