कोई अपना नहीं रूठेगा
जिस बात का डर था आज वहीं हो गया,
जीवन के आकाश से एक सितारा खो गया,
जब से आया वो सीने से लगा रखा था,
रिश्तों का जाल बाद में
सबसे पहले वो सखा था,
कोमल भावनाएं दुनियादारी समझ नहीं पाया,
जंग ए मैदान में बहुत कम समय बिताया,
काश न होने दिया गया होता जिद्दी,
मनमानी न करता न करता खेल की सिद्धि,
आस तो टूटा ही साथ भी टूट गया,
फूल मुरझा क्यों सबसे रूठ गया,
सहूलियत तकनीक की अमन चैन लूट रहा,
गलत इस्तेमाल और जिंदगियां छूट रहा,
जा सकते हो गलत राह नादान को समझाना था,
कुछ समय संग बिता सही राह दिखाना था,
बाल मनोविज्ञान अब
अनिवार्यतः सभी को सिखाया जाए,
कली से फूल और फूल से बीज बना
हरियाली जहां में लाया जाए,
दुख है वो टीस अब सारी जिंदगी उठेगा,
संभलना है अब संभालने वालों को
ताकि कोई अपना इस कदर न रूठेगा।
— राजेन्द्र लाहिरी