लघुकथा

एक छोटी सी पहल…

एक छोटी सी पहल… जिसने जिंदगी बदल दी

 रमा और रूचित की बेटी रूचि होनहार, बुध्दिमान विद्यार्थीनी थी प्रशाला की। पढने में तेज। अभ्यासू प्रवृत्ति के कारण अपनी अध्यापिका के साथ शोध अनुसंधान की जानकारी लेती रहती। किताबें पढना, मनन चिंतन करना, नया कुछ करने की कोशिश करना उसे अच्छा लगता। नयी-नयी जानकारियां ढूंढकर उसमें और सुधार करने की चेष्ठा करती रहती। हंसने खेलने के दिन थे उसके। लेकिन मन में उमंग  थी, कुछ बनने की। अपना अस्तित्व निखारने की।.संगी साथी उसे किताबी कीडा कहकर उसकी हंसी उडाते। लेकिन वह विचलित न हो, अपने आप में मस्त रहती।

शोध कार्य में उसका लगाव, लगन, जिद, जुनून देख उसकी शिक्षिका अनुराधा जी ने रमा और रूचित से उसे उच्च शिक्षा दिलवाने का अनुरोध किया। 

पैसों की किल्लत, महंगाई, थोडी-सी आमदनी में यह संभव नहीं था। लेकिन अनुराधा जी के आग्रह से, सलाह से सहमति जताते, अपनी होनहार बिटिया के सपनों में रंग भरने की चाहत रंग लायी। रमा ने अपने गहने और रूचित ने अपने शेअर बेचकर पैसों का इंतजाम किया। अध्यापिका अनुराधा जी की छोटी सी पहल से रूचि आज अपनी मंजिल पा सकी। रमा और रूचित ने हौसले के पंख दिये और अनुराधा जी ने पांखों को बल देकर उडना सिखाया। 

रूचि अपने ज्ञान, कौशल के बल पर उच्चतम मुकाम पा सकी। अगर अनुराधा जी ने माता-पिता से बात करने की छोटी सी पहल न की होती, साधारण सी जिंदगी होती उसकी। वह भी साधारण परिवार की बहू बनकर, केवल बच्चों की परवरिश  करती या इधर उधर गप्पे लगाती, किटी पार्टी में होती। आज उसने अपनी सोच, बुध्दिमान और हानिरहित दवाई में शोध कार्य  कर  मानवता की सेवा के साथ परिवार, समाज, राष्ट्र का गौरव बढ़या

 है। उसे राष्ट्रपति के करकमलों से ‘नारी चेतना शोधकर्ता सम्मान’ मिला है।

रमा, रूचित को गर्व है अपनी बिटिया पर।अनुराधा जी की आंखें नम हो रही हैं उसे सम्मानित होता देखकर।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८