तितली रानी
तितली-रानी,ऐ तितली-रानी
तुम लगती कितनी प्यारी हो
रंग-बिरंगे पंख कोमल तुम्हारे
तुम लगती, कितनी न्यारी हो।
यहाँ-यहाँ दिन भर मंडराती
और फूलों से नेह लगाती हो
दिन भर तुम, रसपान करती
फिर भी फूलों से ललचाती हो।
तुम तो तुम फुल भी ललचाते
और मोह जाल में फंसाती हो
फूलों से तनिक सा नेह लगाके
तुम उनसे दूर क्यों उड़ जाती हो।
— अशोक पटेल “आशु”