कविता

दीपावली पर्व प्रेम का

करें उजाला दीप जलाकर
तम को दूर भगाएं।
दीपावली है पर्व प्रेम का
मिलजुल इसे मनाएं।

झूठ – कपट को मन से त्यागें
समरसता दर्शाएं।
ऊँच – नीच का भेद भुलाकर
सबको गले लगाएं।

जहाँ न पहुँची किरण ज्योति की
हम प्रकाश पहुँचाएं।
कहीं न कोई रहे अशिक्षित
ज्ञान – ध्वजा फहराएं।

जगमग – जगमग हो घर – आँगन
बाल – वृद्ध मुस्काएं।
दें मंगलकामना – बधाई
गीत प्रगति के गाएं।

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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