सवाल
एक देह एक सवाल है मेरा
मां भारती कर्ज है तेरा
अपंग हूं इसलिए तेरी, पुकार सुन नहीं सकता
मैं सेना व सीमा में जा नहीं सकता
कैसा दुर्भाग्य है जन्म मेरा
मां भारती कर्ज है तेरा
तेरे त्रृण से बिन्नी हुई है नसें मेरी
तेरे प्राणों से है ज़िन्दगी मेरी
तेरी सेवा कंरू तो करूं कैसे
तेरे अहसानो को चुकाऊंगा कैसे
मां भारती कर्ज है तेरा
यह जीवन व्यर्थ सा लगता है
यह जीवन निर्थक सा लगता है
अमावस्या के चांद की तरह,
दाग़ सा लगता है जीवन अपना
मां भारती की सेवा में क्या
और कैसे योगदान होगा अपना
एक प्रश्न सोने नहीं देता रात भर,
कैसे करु जीवन सार्थक अपना
कैसे चुकाऊंगा मोल तेरा
मां भारती कर्ज है तेरा
— हेमंत सिंह कुशवाह