कविता

नवरात्रि उपासना

साधना काल का हुआ मंगल शुभारंभ,
कर लो अंतकरण की शुद्धि को प्रारंभ,
असाध्य कष्टों से है मुक्ति का दिव्य मार्ग,
नवरात्रि उपासना से सवंरते सबके भाग्य ।

माता की आराधना से चमकता ललाट है,
प्रारब्भ कर्मों की ये साधना रामबाण काट है,
जप तप ध्यान चितमन हो निश्चित फलदाई,
जगदंबे करूणामयी देवी दुर्गे शक्ति महामाई ।

भक्तों की पुकार अवश्य सुनती मात अंबिके,
दुखों को दूर करती जगत जननी जगदंबिके,
मां सा कोई नहीं जगत में कोई और दयालु,
भयमोचनी मां शक्ति प्रदायिनी परम कृपालु ।

अवगुणों से विरक्ति का पावन समय है आया,
पवित्र होगा मन, संग संग स्वस्थ निरोगी काया,
मां की स्तुति जो जन करता है पूर्ण विश्वास से,
भर जाता उसका घर बार “आनंद” निधियों से ।

अवसर आया बहुत खास मां की लग्न लगा लो,
अखंड ज्योति जला के दिव्य प्रकाश जगा लो,
मैया शेरावाली पूरी करती सभी की कामनाएं,
शुद्ध शाश्वत अगर होती हैं जीव की भावनाएं ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु