ग़ज़ल
पीर को वेपीर होने दीजिए,
चोट को गंभीर होने दीजिए।
बांध कर क्यूं रखा है हुस्न को।
बात दीये कश्मीर होने दीजिए।
अपने कमरें में सजाऊंगा उसे,
ख़ाव को तस्वीर होने दीजिए।
खुद व खुद बंध जाएगी कायनात,
जुल्फ को जंजीर होने दीजिए।
बहेंगे ये अश्कों के साथ कहां,
गमों को दिले जागीर होने दीजिए।
चले जाना ठहरो पल भर,
थोड़ी सी तासीर होने दीजिए।
— सुदेश दीक्षित