हां मैं जल हूं हां मैं जल हूं
ईश्वर का उपहार प्रकृति को नदिया की धारा कल कल हूं
हां मैं जल हूं हां मैं जल हूं
जब से बनी है सृष्टि जगत में धरती पर हर ओर दिख रहा
मानव इसे नहीं पी सकता मैं सागर का सारा जल हूं
हां मैं जल हूं हां मैं जल हूं
कभी मैं गर्जन करता रहता कभी मैं झरना बनकर बहता
छिति जल पवन गगन समीरा जीवन का आधार प्रबल हूं
हां मैं जल हूं हां मैं जल हूं
ढूंढ रहा है अन्य ग्रहों पर यह विज्ञान मैं कहां-कहां हूं
जहां झलक दिखती है मेरी ढूंढता मानव मैं वह तल हूं
हां मैं जल हूं हां मैं जल हूं
मेरे पास है कई खजाने जिनको दुनिया ढूंढ रही है
इसमें कैद किया है जिन्न को हां मैं वह ऐसी बोतल हूं
हां मैं जल हूं हां मैं जल हूं
मेरी सीमा में जलचर हैं मुझ पर ही आश्रित थल चर हैं
नहीं थाह पाया है कोई गहराई में मैं वह थल हूं
हां मैं जल हूं हां मैं जल हूं
— डॉक्टर इंजीनियर मनोज श्रीवास्तव