मुक्तक
01
चला सकते हो तो चलाओ यार,
जिंदगी की गाड़ी सरकाओ यार,
उलझते समय में कोई नहीं साथी,
खुद हो सत्ता खुद ही हो सरकार।
02
हो सके तो आ जाओ स्वयं इस राह में,
सत्य,अहिंसा,समता,बंधुत्व की चाह में,
कपोल गाथाएं केवल उलझाये रखते हैं,
दुखी होंगे जो जाते हैं पाखंडी पनाह में।
03
पैसा अच्छे खासे बकलोलों को भी इज्जत दिला देता है,
न होने पर खालिस ईमानदारों की दुनिया हिला देता है,
जिंदगी में कभी भी कम करके न आंकना इस पैसे को,
क्या पत्रकार,क्या मीडिया सबको आंगन में नचा देता है।
— राजेन्द्र लाहिरी