विजय पर्व विजयदशमी
देखो री सखी घर-घर बटत बधाई,
रघुवर संघ विराजत सर्व सुहागन सीता माई,
सुंदर छवि अंखियन में समाई,जो छवि निरखत
कामदेव भी हारे,शोभा वरनी न जाए,
देखो री सखी….
कोसलाधीश श्री रामचंद्र जी जीत लिए गंभीर लड़ाई,
आज विजय ध्वज फहराएं हर्षित लक्ष्मण के भाई,
मेघनाथ, रावण शत्रु, झटक-पटक भूमि में समाई,
विस्मित हो गए पराक्रम देख विभीषण रावण के भाई,
देखो री सखी….
पुलकित नयन मकराकृत कुंडल स्वर्ण मुकुट धराई,
राम लक्ष्मण दोऊ भाई मान बढा़वत जगत माही,
धन्य महतारी तन प्राण बहे छाती भई शीतलाई,
भरत-शत्रुघ्न संग अवधपुरी दीपन उत्सव मनाई,
देखो री सखी….
हनुमत गावत कीर्तन गूंजत राम राम स्वर जग माहीं,
नल नील संग वंदन करे जामवंत पुष्पन माल चढ़ाई,
गगन उपवन कण-कण सुरभित उर “आनंद” समाई,
दादूर, मोर, पपीहा झूमत विजय पर्व सुहाना आई,
देखो री सखी….
राम नाम भक्तन हितकारी जपे जो चरनण अमृत पाई,
शरणागत मन पावत इच्छित वर भव सागर तर जाई,
कलियुग माही राम नाम आधारा भवसागर तर जाई,
कृपामयी क्षमा करो मेरे अवगुण भक्ति अनुराग बढ़ाई,
देखो री सखी….
— मोनिका डागा “आनंद”