कविता – हमारे अनमोल रतन
कविता बुला रही है,
प्रेम से कही जा रही है,
कैसे अनमोल थे हमारे,
खुशियां जो बेशूमार था,
खत्म होती जा रही है।
जितनी भी प्रशंसा करते हैं हम,
वहीं कम होगी ज़रूर।
मत निकालिएगा हृदय से उन्हें,
यही प्रार्थना होगी मशहूर।
मानवीय मूल्यों को,
हमेशा आगे बढ़ाने वाले थे एक महामानव।
दुनिया आगे देखते हुए,
कहेगी हमेशा थे एक,
सादगी के मधु माधव।
नम्रता और सुचिता से,
हमेशा जाने जाते थे।
अहम् को लेकर,
कभी नहीं कुछ पाते थे।
उम्मीद थे कि यही सबसे बड़ी बात है,
अन्तर्मन में शामिल,
सबके हृदय तल में बसे हुए,
अनन्य प्रियपात्र थे।
हमेशा आगे बढ़ने में,
आनंद और उत्साह से भरपूर,
नम्रता को साकार करने वाले,
उद्यमी नहीं काव्य व कला मंच के,
सबसे बड़े सिद्धार्थ थे।
धन-दौलत से मालामाल,
फिर भी नम्रता से भरपूर थे।
आने वाले समय में,
अविश्वसनीय रूप में,
रहने को आतुर थे।
दुनिया आगे बढ़ने लगी है,
खूबसूरत बगीया भी सजने सजाने लगी है।
रतन की परिकल्पना को,
आज़ बहुमत से,
सबके लिए सबों के हृदय में,
बसने लगी है।
— डॉ. अशोक, पटना