कविता

रावण वध

विजयादशमी पर 

जगह जगह रावण मारा जा रहा था 

हर कोई आतुर था 

रावण का वध करने को 

रावण के सिर एक एक 

धरासाई हो रहे थे 

गिरते गिरते वो अट्ठहास कर रहे थे 

मुझे तुम मार नहीं सकते 

मैं अजर हूँ मैं अमर हूँ 

मैं तुम्हारें भीतर हूँ 

जब तक तुम्हारें भीतर जिन्दा हूँ 

मैं मर नहीं सकता 

भले तुम ख़ुश होलो 

मैंने रावण मार दिया 

जब तक तुम खुद को मारोगे नहीं 

मैं तब तब जिन्दा ही रहूँगा

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020