शौक पालना भी ज़रूरी है
पढ़कर यह खयाल मन में ज़रूर आएगा कि कैरियर बनाने के कीमती समय को शौक पूरा करने में बर्बाद करने का क्या मतलब है ? यह सही है कि कैरियर बनाना आज के समय में युवा पीढ़ी के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। बच्चे के पैदा होते ही माता पिता उसके शानदार कैरियर के सपने बुनने लगते हैं। अपनी अधूरी ख्वाहिशों को बच्चे के माध्यम से पूरा करने की कोशिशों में लग जाते हैं। यही कारण है कि भारत जैसे देश में बच्चों को अपने कैरियर का चुनाव करना या तो आता ही नहीं है या फिर बहुत देर से आता है। सही कैरियर का सही समय पर चुनाव करने वाले युवाओं का प्रतिशत बहुत कम है। लगभग चालीस वर्ष की आयु तक अधिकतर युवा अलग अलग कैरियर विकल्प तलाशते रहते हैं। सफल व्यक्तियों के जीवन को देखें तो व्यवसाय विशेष में सफलता प्राप्त करने से पहले और बाद में भी उन्होंने अपने जीवन में कोई न कोई अपनी रुचि के कौशल में भी दक्षता हासिल की है। कितने ही उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
एक उदाहरण यहां पर साझा करना ज़रूरी समझती हूं। महान वैज्ञानिक और गणितज्ञ अल्बर्ट आइंस्टीन संगीत से बहुत लगाव रखते थे। जैसे विज्ञान की प्रयोगशाला उन्होंने बनवाई हुई थी वैसे ही उनका संगीत कक्ष भी था। उन्हें वाद्य यंत्र बजाने का बहुत शौंक था और हर प्रकार के वाद्य यंत्र उनके कक्ष में रखे रहते थे। जैसे नियमित रूप से प्रयोगशाला में वो जाते थे वैसे ही अपने संगीत कक्ष में भी समय बिताते थे। उनका मानना था कि मस्तिष्क को विश्राम देने के लिए संगीत से बेहतर कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
अकेले आइंस्टीन ही अपनी रुचि के कार्य को महत्वपूर्ण मानते हो ऐसा बिल्कुल नहीं है। सभी सफल लोग कोई न कोई पसंदीदा कार्य ऐसा अवश्य करते हैं जिसमें उनके मन की संतुष्टि छुपी होती है। निरंतर एक ही काम को करते जाने से एकरसता आ जाती है। वापिस पूरे उत्साह के साथ काम पर लौटने के लिए मन मस्तिष्क का तरोताजा होना उतना ही आवश्यक है जितना किसी भी काम को पूरा करना। इसीलिए अपने शौंक को पहचानना और समय देना आवश्यक है। बचपन से ही इसका अभ्यास प्रारंभ हो जाना चाहिए।
अभिभावकों को चाहिए कि बच्चे की रुचि को पहचानकर उसे निखारने के लिए प्रोत्साहित करें। उसे कोई न कोई मनपसंद काम अवश्य करने दें। बचपन से इस आदत को विकसित करने पर वह तनाव को भगाना सीख जायेगा। कभी भी अवसादग्रत नहीं होगा। इतना ही नहीं उसके व्यवहार में भी आकस्मिक बदलाव नहीं आएगा। उसके दिमाग के किसी कोने में यह बात अवश्य रहेगी कि उसके माता पिता ने उसकी पसंद नापसंद को महत्व दिया है। इसलिए कभी भी वह अपने मां बाप का विरोध नहीं करेगा। नाजुक पलों में भी नशे की गिरफ्त में नहीं आएगा।
बच्चों को भी अपनी रुचि के कार्य में मन लगाना चाहिए। मां बाप यदि सहयोग नहीं करें तो उन्हें मनाने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। मां बाप अपने बच्चे को खुश देखना चाहते हैं तो देर सबेर उसकी रुचि के कार्य में उसको प्रोत्साहन अवश्य देंगे।
यह अभ्यास न केवल बेहतर इंसान बनने में मदद करेगा बल्कि जीवन को भी सरल बना देगा। एकाग्रता बढ़ाएगा और मानसिक स्वास्थ्य में बढ़ोतरी करेगा। इस समय समाज को ऐसी ही युवा पीढ़ी की आवश्यकता है।
— अर्चना त्यागी