अनमना है मन
पूछता हूँ मैं स्वयं से क्यों अनमना है मन
कैसे हावी हो गया हम पर ये अकेला पन
खो गए जाने कहां बचपन के सारे मित्र
और लगता है शिथिल कमजोर अपना तन
बचपन के किस्से पुराने क्यो याद आते हैं
सोचते हैं कितना घना था यादों का वो वन
जितने भी बिरवे लगाओ सूख जाते अब
पहले कैसे पनप जाता था यही उपवन
सुन रहे हैं चारों तरफ कहर है बरसात का
जाने कैसे इस बार सूखा ही गया सावन
— डॉक्टर इंजीनियर मनोज श्रीवास्तव