कविता – रूह तक रस्ता
इन्सानी सियासत में,
इमानदारी रहनी चाहिए।
मंजिल पर पहुंचने में,
शराफ़त दिखनी चाहिए।
कौन जानता है कि,
एक दिन रस्ते पर,
फ़रिश्ते मिलेंगे।
तुम्हारी चाहत में तुमसे कुछ कहेंगे।
अगर मांगने के लिए कुछ कहेंगे,
रूह तक रस्ते में,
जाने की जरूरत से रूबरू होंगे तो,
सही क़दम उस ओर ही बढ़ेंगे।
इन्सानियत को बरकरार रखने में,
इन्सानी सियासत की बड़ी खबरें,
आसमां तक पहुंच जाती है।
खबरों को लेकर तरह-तरह की बातें हो न हो,
यही दिल के करीब,
पहुंच जाती है।
नेक काम करने वाले,
फ़रिश्ते से नजदीकी रखते हुए आगे बढ़ने की,
हमेशा सोच कर,
आगे चलते हैं।
बदमिजाज शख्सियत को,
इस इल्म की जरूरत नहीं रहती है,
बस रब को अपनी बर्बादी का,
दोष मढ़ते हुए आगे बढ़ने में ही,
सबसे बड़ी कसरत समझते हैं।
समन्दर की गहराई से,
क्या कोई रूबरू हुआ है आजतक।
सम्बन्धों में निकटता पैदा करने वाले,
क्या कारणों से ही,
आगे बढ़ने का ख्याल रखते थे कल तक।
हमेशा लगातार मेहनत और लगन से काम करने की,
कोशिश ही मंजिल पर पहुंचने की,
सबसे बड़ी इबादत है।
इस चुनौती को साकार करने में,
दिल से मेहनत करना ही,
जिंदगी की सबसे बड़ी शराफ़त है।
— डॉ. अशोक, पटना