ज़हर से भी जहरीला आदमी
सोचा था, ज़हर बनाएँ।बना भी लिया।किंतु सोच का थोड़ा – सा अंतर है।आप भी उसी सोच से सोचिए।ये जहर निर्माण अपने लिए नहीं किया।क्या ज़हर बनाकर हमें आत्महत्या थोड़े ही करनी है। इसे खाकर दूसरे लोग मरें। अब मरें तो मरें। अपना क्या जाता है?ज़हर खूब बिकेगा। हमारी आमदनी बढ़ेगी।लेकिन क्या करें ,उन्होंने हमारे लिए बना डाला।हमने सबके लिए बना दिया। जनहित का काम जो है। तुम भी खाओ ,हम भी खाएँ। तुम भी हमारा ज़हर खाकर बेमौत मरो,हम भी तुम्हारा ज़हर खाकर बेमौत मरें।
यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ ,ढूंढों नहीं कहाँ -कहाँ ;ज़हर का फ़ैलाव है।सैलाब है।भले ही घी,तेल, फल, सब्जी, दवा,मसाले,अन्न,दालें,सोना,चांदी, नकली मिले,किन्तु हमारे और तुम्हारे ज़हर की ये गारंटी है,कि यह डेढ़ सौ प्रतिशत शुद्ध ही मिलेगा।इससे मरने की पूरी गारंटी है।तुम भी मारो, हम भी मारें।आखिर आदमी को आदमी के ही हाथों मरना है। आदमी को आदमी के ही कारण मरना है।इन ऊँचे-ऊँचे भवनों ,अट्टालिकाओं,बीसियों मंजिला ऊँचे भवनों में आदमी को निगलने जगंल या चिड़ियाघर से शेर चीते तो नहीं आ रहे । जब आदमी आदमी का दुश्मन है,उसका ज़हर है ;तो आदमी की मौत कारण भी आदमी ही बनेगा।अब यह अलग बात है कि कोई नकली और मिलावटी दवा से मरता है।कोई तेल में पौमोलिव ,घी और मंदिरों के लड्डूओं में चर्बी, धनिये में लीद, हल्दी और मिर्च में रंग,काली मिर्च में पपीते के बीज,कागज़ के प्यालों में जहरीली पॉलीथिन से मर रहा है;किन्तु उसका एक मात्र कारण आदमी के मन और मस्तिष्क का जहर है।
जो आदमी जिस स्तर का है,वह उसी स्तर का जहर -निर्माण कर नर -संहार कर रहा है।किसी देश का शासक गोला बारूद,तोपों, तरह तरह की अत्याधुनिक गनों और अस्त्र शास्त्रों से जहर -वृष्टि कर रहा है।एक कुंजड़ा सब्जियों को जहरीले रँग से अनुरंजित करके मौत बो रहा है। मौत बेच रहा है। और समझदार आदमी खरीद कर खा रहा है,और कैंसर आदि से सिधार रहा है।दूधवाली या दूध वाला ज्यादा से ज्यादा नाले का पानी मिला देगा या नल का। वह तो बेचारा गरीब है। पर है वह भी जहर बेचने वालों की पंक्ति का ही आदमी या औरत।दवाओं और मसालों में मिलावट करने वाले भी छुपे रुस्तम हैं। किसान भी कम नहीं है। उसे भी ज्यादा पैदावार का लालच उसे कीटनाशी नहीं ,मानव -नाशी रासायनिक डालने को आहूत कर रहा है। और वह भी उसके आवाहन को सहर्ष स्वीकार करते हुए जहर बो रहा है,जहर काट रहा है,जहर उगल रहा है। अब वह अन्नदाता नहीं, मृत्युदाता की पदवी का अधिकारी है। फल उगाने और बेचने वाले इसी पंक्ति की शोभा बढ़ाने वाले हैं।
यहाँ जहर के निर्माण ,विस्तार, प्रचार,संचार में कोई किसी से कम नहीं है। नेता गण विपक्षियों के लिए विष -वमन कर रहे हैं तो उधर समर्थ और कार्यरत जन उत्कोच-विष की खेती कर रहे हैं।और उसके परिणामस्वरूप घरों में सोना , हीरे, जवाहरात, नोटों के अंबार लगाए कोबरा बने हुए उनके रक्षक बने हुए हैं।जिधर भी नज़र डाली जाए ,आदमी-आदमी, औरत-औरत जहर की पुड़िया नहीं,खदान नजर आती है। जितना भी खोदिये उनके तन- मन, विचार और भावों में विष का सागर हिलोरें लेता हुआ दिखाई देगा।
जहर से कोई अनभिज्ञ भी नहीं है।सब जानते हैं,कि हम जहर खरीद रहे हैं। जहर खा रहे हैं।कुछ लालचवश कुछ मजबूरीवश! सारी धरती जहर से पाट दी गई है।एक से एक बेहतर जहर निर्माता पैदा हो रहे हैं।बचिए ! जाओगे तो जाओगे कहाँ बच्चू ! काम तो आदमी से ही पड़ना है! सब एक दूसरे के दुश्मन हैं।रिश्वत लेते हुए पकड़े जाओ,तो रिश्वत देकर छूट जाओ ! सीधा सरल समीकरण है! जहर ही जीवन दाता भी बन गया है।कौन किस जहर से सिधारे ,कुछ पता नहीं । हाँ ,इतना सुनिश्चित है कि सिधारना जहर से ही है ;जिसका निर्माण जहर से ज़हरीले आदमी ने किया है।
— डॉ.भगवत स्वरूप ‘शुभम्’