लघुकथा

सन्नाटा गहरा गया था!

“भक्ति-भाव से महाराणी का गुणगान करके शक्ति की महाराणी का नवरात्रि पावन पर्व मनाया जाएगा, कृपया आप सब लोग अवश्य दर्शन दें.” सभी सखियों को पूजा ने पूजा में सम्मिलित होने का न्योता दिया.
सब सखियां रात के जगराते पर पहुंच भी गई थीं. सब दिख रहे थे, पर पूजा की सास नहीं.
“पूजा, तुम्हारी सास कहां है?”
“बुढ़िया बाहर के कमरे में खांस रही है!” बेशर्मी से पूजा ने जवाब दिया. सब सन्न!
शक्ति की महामाई के पवित्र त्योहार का उल्लास जाता रहा. एक-एक कर सखियां निकलती गईं. इंसानियत की इंतिहा जो हो गई थी. अब जगराते में भी सन्नाटा पसर गया था.
पूजा तौलिये को गर्म पानी से भिगोकर सास के नए कपड़े लेकर उन्हें जगराते में लाने के लिए गई. पर यह क्या!
सास को तो कब का मां ने अपनी गोद में शरण दे दी थी!
सन्नाटा गहरा गया था!

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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