कविता – फैशन का नया जमाना
गाँव जवार उजड़ रहे हैं
शहर बना नई आशियाना
खेती बाड़ी कौन करे अब
फैशन का नया जमाना
गाँव की मिट्टी रो रही है
आम की बगिचे हुए बेगाना
नदी की स्वर लहरी शोर लगे
फैशन का नया जमाना
धोती साङी पहनावा है छूटा
फैशन में डोले है परवाना
सूट बूट पहने अब बन्नो
फैशन का नया जमाना
दादा दादी सब छोड़ चले
एकल परिवार का दीवाना
होली दीवाली बेकार लागे
फैशन का नया जमाना
प्रेम भाव सब लुप्त हुए हैं
चाहरदीवारी में क़ैद सयाना
जग संसार से हो गये दूर
फैशन का नया जमाना
— उदय किशोर साह