ग़ज़ल
हुस्न पर तो सभी ने कही है ग़ज़ल।
बारहा इश्क़ ही ने कही है ग़ज़ल।
दूधिया रोशनी में नहाया बदन,
रात भर चाँदनी ने कही है ग़ज़ल।
आज फिर दर्द का तेज़ तूफ़ान है,
आज फिर मैकशी ने कही है ग़ज़ल।
डाल फंदा लटकती जवानी मिली,
किसलिए ख़ुदकुशी ने कही है ग़ज़ल?
दोस्तो देखिए तो ग़ज़ब हो गया,
मुफ़लिसी पर किसी ने कही है ग़ज़ल।
आग की सेज पर कोई सोने चला,
मौत पर ज़िंदगी ने कही है ग़ज़ल।
हाथ में तो न उसके कभी कुछ रहा,
ख़ामखाँ आदमी ने कही है ग़ज़ल।
— बृज राज किशोर ‘राहगीर’