कविता

मुझे जीत लेती हो तुम

एक चकोर उस चांद और चांदनी का बड़ा दिवाना हैं,
रात की कली ने जिसको अपना सब कुछ माना है,
इंतजार के लम्हों में भी जीवन संगीत वो बिखराते,
रवि की तपिश को नज़रअंदाज़ कर चांद पे जा लुटाते ।

सोलह कला श्रृंगारित आया चंदा खुशियों की तरह,
चकोर निहारे पूर्ण चंद्रमा को प्रेमी युगल की तरह,
चांदनी बिखरी पृथ्वी पर दिन के उजाले की तरह,
वाह आज शाम रंगीन हुई है तेरे आंचल की तरह ।

मैं तेरी ही छांव में बैठकर सारा गम भूल जाता हूं,
झूलसे हुए घावों पर शीतल ठंडक आहट पाता हूं,
दवा है तू ही मेरे हर दर्द की चांदनी आभा स्वरूप,
“आनंद” भर देता मुझमें तेरा प्यारा मुस्कुराता रूप ।

कुछ कहूं,कभी मौन रहूं मेरे दिल को पढ़ लेती तुम,
अंदाज तुम्हारा सबसे अलग मुझे जीत लेती हो तुम,
ज़मीं पर ये दौलत रब ने खुबसूरत उपहार में दी हैं,
जिंदगी मेरी तेरी जगमगाहट से ही सजी हुई है ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु

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